मुसाफ़िर ये राह नहीं सुगम
काव्य साहित्य | कविता किशन नेगी 'एकांत'1 Oct 2019
राह के मुसाफिर साथ तेरे ये भी पग धरती
बनाले हमसफ़र साथ तेरे चलता जो पौन है
राह तुझे ही तलाशनी है अपनी मंज़िल की
तू ही बता यहाँ तेरे सिवा तेरा और कौन है
बेइंतिहा बाधायें होंगी पर तू चलना अनवरत
बड़ी ज़ालिम ये दुनिया तेरे संघर्ष पर मौन है
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}