नव संवत्सर
काव्य साहित्य | कविता परिमल पीयूष15 Jun 2019
हे अंशु प्रथम, प्रत्यूष प्रखर
प्राची का मस्तक लोहित कर
दे नव ऊर्जा हर कण में भर
हो रहा उदय नव संवत्सर,
नव हर्ष प्रबल, आह्लादित स्वर
है नव प्रवाह, निर्मल निर्झर
नव कुमुद-पंक्ति, है नवल प्रहर,
नव है सुवास, नव अलस भ्रमर.
वसुधा का श्यामल रंग अजर
जीवन को देता प्रेरित कर
नव क्षितिज ढूँढ़ता नव वितान-
मानस का, होता प्रेम प्रवर.
भर नव विचार, हो श्रेयस्कर
हो शुद्ध हृदय का स्नेह सुकर
हो आज नवल हर घर भास्वर
नव - नव सा हो यह वर्ष अमर.
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