नव वर्ष का इंतज़ार
काव्य साहित्य | कविता डॉ. राधिका गुलेरी भारद्वाज1 Jan 2020
नवोत्कर्ष नवजोश का संचार हो रहा है
हर वर्ष नव वर्ष का इंतज़ार हो रहा है
बगिया में पुलकित पुष्पों सा
शिशुओं में नव उल्लास हो रहा है
हर वर्ष नव वर्ष का इंतज़ार हो रहा है
सुर्ख लाल उष्मित रगों में
नव स्वप्नों का शृंगार हो रहा है
हर वर्ष नव वर्ष का इंतज़ार हो रहा है
वही रवि वही लालिमा, चन्द्र वही और ज्योत्स्ना
पर नयनों में नव प्रभा का प्रकाश हो रहा है
हर वर्ष नव वर्ष का इंतज़ार हो रहा है
नेता करते उद्घोष जन-जन में भरते जोश
नव प्रस्तावों नव लक्ष्यों का आग़ाज़ हो रहा है
हर वर्ष नव वर्ष का इंतज़ार हो रहा है
अरमान अधूरे होंगे अब पूरे
यूँ कुछ सुखद एहसास हो रहा है
हर वर्ष नव वर्ष का इंतज़ार हो रहा है
हर तन रोमांचित कण-कण प्रफुल्लित
धरती से आकाश हो रहा है
हर वर्ष नव वर्ष का इंतज़ार हो रहा है
जाते वर्ष का आभार, आते को करें स्वीकार
आनंदमयी सारा संसार हो रहा है
हर वर्ष नव वर्ष का इंतज़ार हो रहा है
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}