पगली
काव्य साहित्य | कविता रंजना भाटिया9 Jan 2008
यूँ ही कभी-कभी
दिल करता है
कि चुरा लूँ आसमान
का नीला रंग सारा
चाँद को बिंदी बना के
माथे पर सजा लूँ
और दिल में जमी गर्मी को
बंद मुट्ठी से खोल के
गरमा दूँ .....
तेरे भीतर जमी बर्फ़ को,
सुन के वो बोला मुझ से
कि
"तू इतनी पगली क्यों है?"
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