प्रतिदान
काव्य साहित्य | कविता रंजना भाटिया5 Nov 2007
धरा का रूप धरे
उजाला तुझ सूरज से पाती
तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
घूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं