प्रेम (प्रेरणा सिंह)
काव्य साहित्य | कविता प्रेरणा सिंह1 Feb 2020 (अंक: 149, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
जब भी ठोकर खाती हूँ,
तुझको ढूँढ़ती हूँ मैं।
जब भी सिसकियों से
बँधी हो साँस,
तुझको अनजाने ही
भिंजती हूँ मैं।
अकेला ख़ुद को जो पाती हूँ,
तुझको अनजाने हाथों से -
खींचती हूँ मैं।
बिन बात के जो
हल्की मुस्कुराहट आए,
होठों के कोरों से तुझे...
यूँ सींचती हूँ मैं।
मेरे नाम से आज भी
आ जाती होगी
मुस्कुराहट तेरे चेहरे पे,
ये सोच दबी सी आह
भर लेती हूँ मैं।
ना तुझको कुछ कहना,
ना मुझको कुछ सुनना,
हवाओं में घुली तेरी साँस के-
संदेशे समझ लेती हूँ मैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
suman 2020/05/15 04:52 PM
waah!!!