प्रेम (प्रेरणा सिंह)
काव्य साहित्य | कविता प्रेरणा सिंह1 Feb 2020
जब भी ठोकर खाती हूँ,
तुझको ढूँढ़ती हूँ मैं।
जब भी सिसकियों से
बँधी हो साँस,
तुझको अनजाने ही
भिंजती हूँ मैं।
अकेला ख़ुद को जो पाती हूँ,
तुझको अनजाने हाथों से -
खींचती हूँ मैं।
बिन बात के जो
हल्की मुस्कुराहट आए,
होठों के कोरों से तुझे...
यूँ सींचती हूँ मैं।
मेरे नाम से आज भी
आ जाती होगी
मुस्कुराहट तेरे चेहरे पे,
ये सोच दबी सी आह
भर लेती हूँ मैं।
ना तुझको कुछ कहना,
ना मुझको कुछ सुनना,
हवाओं में घुली तेरी साँस के-
संदेशे समझ लेती हूँ मैं।
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