प्राइवेट टीचर की दास्तां-१
काव्य साहित्य | कविता सरफ़राज़15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
काश मैं मंदिर का पुजारी होता
छोटा-सा ही कोई कारोबारी होता
तो इस महामारी के दौर में भी बेबस
मेरे आगे तिलिस्म-ए-बेरोज़गारी होता
अफ़सोस नहीं, रोष नहीं कि
मैं इक लाचार प्राइवेट टीचर हूँ
बरसते अब्र में भी फ़ख़्र है कि
मैं हर पीढ़ी का फ़्यूचर क्रिएटर हूँ
ना नट हूँ, ना कोई एक्टर हूँ
हर सेक्टर में हाथ आज़माकर
घर सम्भालूँ, सबका पेट पालूँ
कहाँ मैं इतना बेहतर हूँ!
ना रिश्तों का ये जाल होता
ना मैं इतना ज़िम्मेदार होता
ना कोई नाइंसाफ़ी होती
ना लफ़्ज़ों का ये वार होता!
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