पूर्णता का बोध
काव्य साहित्य | कविता यदु जोशी 'गढ़देशी'7 Feb 2014
पृथ्वी गोल है
सूरज चाँद भी दीखते हैं गोल
बच्चों के हाथ में गेंद गोल है
चूल्हे में गर्म हो रहा
तवा गोल है,
बन रही रोटियाँ भी गोल
घर में भूगोल है और बाहर भी
जीवन से मृत्यु और पुनरागमन में
जल में उभरती हुई
जल तरंगों में
चक्की के पाटों में
मंदिरों की परिक्रमा में
घंटियों की गूँज में
पूर्णता का बोध है
सच है कि शून्य गोल है
और इसी में है प्रारब्ध
गणनाओं का खेल भी!
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