रात की ख़ामोशी
काव्य साहित्य | कविता एकता नाहर30 Jan 2012
रात की ख़ामोशी
इस बात की गवाही है,
शायद आने वाली
फिर एक नयी तबाही है!!
सहमा-सा हर मंजर
सनसनी-सी फैली हुई,
सुनसान रास्तों पर शायद
कोई आतंक का राही है!!
यह सीमा पार के हमले हैं
या अपनों के हैं विद्रोह,
सारी रात कश्मीर ने
इस सोच में बितायी है!!
जंग-ए-मैदान में
पल-पल छलनी होते सीने,
मौत के सामानों ने
कैसी होड़ मचाई है!!
‘एकता' अब तुमको भी
हथियार उठाने होंगे,
अब फीकी पड़ने लगी
तुम्हारी कलम की स्याही है!!
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