रीती गागर
काव्य साहित्य | कविता श्रीमती प्रवीण शर्मा15 Apr 2015
बदरंग झील के ऊपर
अनकहे जज़्बात
जम गए लफ़्ज़ों के संग
बनकर पथरीली नाव।
बदहवास हवाओं में
बनती अनबूझी तस्वीर
गूँज रही है अर्श पर
चटके रिश्तों की आवाज़।
बदलते वक़्त से मिल हिम
पिघला ठंडे पानी में
टूटे पत्ते सा बह गया
जल की धारा के साथ।
डुबकियाँ लगाते यहाँ
बहते लहरों के संग
छिटपुट बिखरते
कुछ मन के एहसास।
शेष नहीं कुछ भी
इस रीती गागर में
घुल गया रंगों का मेला
इस अनंत सागर में
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