रोते रहते
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता संजीव ठाकुर1 Oct 2019
रोंदूमल जी रोंदूमल
रोते रहते रोंदूमल
बात कोई हो या न हो
बस रोएँगे रोंदूमल!
मम्मी ने टॉफ़ी न दी
पापा ने कॉफ़ी न दी
फिर तो बात बतंगड़ कर
रोएँगे ही रोंदूमल!
किसी से मुँह की खाएँगे
चाहे ख़ुद धकियाएँगे
अपने मन की न कर पाए
तो रोएँगे रोंदूमल!
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