श्रद्धाञ्जलि - हरिवंश राय बच्चन जी को
काव्य साहित्य | कविता नागेन्द्र दत्त वर्मा12 Jul 2008
प्रस्तुति : शकुन्तला बहादुर
खूब सजायी, खूब सँवारी मधुशाला बच्चन जी ने।
"मधुबाला" "मधुकलश" लुटाया मस्ती से उस जनकवि ने॥
जो भी आता छककर पीता लेकर हाला का प्याला।
जाते जाते कहता जाता अमर रहे यह मधुशाला॥
ककड़ी के खेतों से होकर जब देहाती स्वर आया।
कवि ने उसमें भी जीवन का एक नया दर्शन पाया॥
"निशा-निमंत्रण" दिया जगत को उन्मन भावों को लेकर।
मिलता है "एकांत संगीत" में कवि का कुछ एकाकी स्वर॥
"मधुशाला" तो सदा रहेगी नहीं रहा देने वाला।
भावलोक से सबको देगा भरकर मदिरा का प्याला॥
बच्चनजी तो अमर हुए पर उक्ति अभी तक सच उनकी।
"पाठकगण हैं पीने वाले, पुस्तक मेरी मधुशाला"॥
सौम्य, सरलता और साधना की जीवित प्रतिमा वे थे।
युवा-हृदय की ध़ड़कन थे वे, कोटि कोटि जन के प्रिय थे॥
सादर नमन तुम्हें हे कविवर,स्नेहसुमन वर्षा करना।
अपनी रचनाओं की धुन में मानस प्रवर पगा देना॥
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