अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

स्पर्श (कहफ़ रहमानी)

'हृ' - स्पर्शराग-रंजित भूषित - भव
नीत-सकल सम्यक न
समतामूलक - प्रमाण 'स्पर्श'
हस्तगत प्रेक्षा का ऊष्मीयमान।


शैथिल्य _आश्लथ, प्रगाढ़ चुम्बन
अहा!       अरी,        अहो ;
उच्छृंखल, उच्छवसित _स्वरैक्य - स्वन।


अयी, मेदिनी
प्रीतिपात  का मूल्य फिर?


"संदर्भ-वैशिष्ट"   तुम
किन्तु शीर्षक भिन्न-भिन्न,

 

संकेन्द्रित सुसूक्त यह  
"कर अर्पित यौवनोपहार 
क्षम्य नहीं  कौमार्य"। 


अट्टहास मादन वक्ष पर के
मधुमत्त कटि, विहंसित - कुसुमित नितम्ब 
औ'  कच-कुन्तल 
स्यात_  पृष्ठ अनेक एक ही पुस्तक के 
विशिष्ट वस्ति-प्रदेश एक। 


तृषा स्तर-स्तर 
तीव्र-तीव्र - मदिर - मधुरिम 
आवृत्त निरन्तर। 


मैं अल्कावलि! 
उदग्र  विकारों की  महौषधि 
रक्तचाप केवल
बाह्य - आंतरिक  द्विपात - निपात। 


समाविष्ट रक्त - वीचियों में 
समस्त  केलि, 
मैं केलिकला! 
आकृतियों पर उल्लिखित 'रोष '
उद्वेग - उद्द्वेप। 


भिन्न_ समस्टिकुल से
प्रगाढ़ आलिंगन, द्रवण, संघनन 
निरन्तर अवतरित हृ-पृष्ठों पर। 


परिपक्व विचार श्रेष्ठतम 
आदर्शों पर 
पृष्ठ_दीर्घ     न लघुव्याल। 


"क्लांत वह्नियों  का न कोई  अर्थ 
व्यर्थ है यह  मूर्च्छा, अवसन्नता "। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं