सृष्टि का सार : नारी
काव्य साहित्य | कविता सौरभ प्रभात15 Oct 2019
करूँ मैं तेरी महिमा का मंडन,
या तेरी वेदना का चित्रण
बतलाऊँ मैं तेरी क्रूरता,
या दिखलाऊँ तेरा समर्पण
करूँ बखान मैं तेरे गुणों का,
या अवगुणों की खान दिखाऊँ
करूँ तेरे चरित्र का गान या,
तेरी अस्मत पर बाण चलाऊँ
क्योंकि...
नारी है तू नारी है,
गांडीव गदा कटारी है
सबल सशक्त सहज सरल,
अबला है और बेचारी है
सशक्त भी तू है, अशक्त भी तू है
क्षण क्षण में व्यक्त भी तू है
ताज भी तू है, तख्त भी तू है
हाड़ माँस और रक्त भी तू है
बाग बाग में कूजित तू है
वेदों में सम्पूजित तू है
युग युग में सम्मानित तू है
कालचक्र में कलुषित तू है
शांत सौम्य पार्वती तू है
रौद्र रूपा काली भी तू है
तपस्विनी योगिनी तू है
तंत्र मंत्र कपाली भी तू है
ब्रह्मा की वाणी भी तू है
क्षीरसागर का पानी तू है
महादेव की शक्ति है तू
नारायण की नारायणी तू है
नवरात्रि में पूजित तू है
माहवारी में दूषित तू है
तू गंगाजल धारा सी पावन
अहिल्या सी शापित भी तू है
सूरज की उष्मा भी तू है
चंदा की शीतलता तू है
बाधा विघ्नों की कारक तू है
और विघ्न-हर्ता भी तू है
राग भी तू है, द्वेष भी तू है
प्रेम, क्षमा और क्षोभ भी तू है
त्याग, तप, बलिदान भी तू है
मोह भी तू और लोभ भी तू है
सदाचारी है तू, अनाचारी भी तू
ज़ुल्म है तू, अत्याचारी भी तू
भोग्य भी तू है, भोग्या भी तू
तू ही आदर्श, व्यभिचारी भी तू
तू ही जननी, तू ही जाया
तू ही जग की मोहिनी माया
तू ही जड़ है, तू ही चेतन
तू ही श्वास है, तू ही काया
सीता जैसी एकव्रता तू
पांचाली सी बँटी भी तू है
आम्रपाली सी नगरवधू तू
सावित्री सी सती भी तू है
जान भी तू है, शान भी तू है
जन जन का अरमान भी तू है
मान भी तू, अपमान भी तू है
हर नर की पहचान भी तू है
हर मंदिर की मूरत तू है
वेश्यालय की सूरत तू है
कण कण में बसती है तू ही
सकल विश्व की जरूरत तू है
योग भी तू, संभोग भी तू
निश्चित तू है, संयोग भी तू
संयम है तू, तू ही वासना
दुत्कार है तू और तू ही उपासना
धरा भी तू, आकाश भी तू है
दूर भी तू और पास भी तू है
भूख भी तू और प्यास भी तू है
जीवन की हर आस भी तू है
इश्क़ भी तू है, नफ़रत भी तू
पाप पुण्य की फ़ितरत भी तू
शौक़, मौज और लालच भी तू
दुर्भाग्य भी तू है, क़िस्मत भी तू
सुख भी तू है, शांति भी तू
कष्ट है तू और क्लेश भी तू
रोग भी तू, उपचार भी तू
संपूर्ण है तू और शेष भी तू
संपूर्ण है तू और शेष भी तू
क्योंकि...
नारी है तू नारी है
गांडीव गदा कटारी है
सबल सशक्त सहज सरल
अबला है और बेचारी है
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