सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
काव्य साहित्य | कविता डॉ. नितिषा श्रीवास्तव15 Aug 2019
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
ये पुरुष बना रावण जब-जब,
तू थी सीता की अवतारी।
ले कर तृण हाथों में तूने,
की थी खुद रक्षा की तैयारी।
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
विश्वास तेरा जब भी था अटल,
यमराज से भी बाजी मारी।
बन कर सावित्री का अवतार,
रक्षा की इन पुरुषों की बार-बार।
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
कर चीर-हरण के प्रयत्न कभी,
क्या यही तेरा सम्मान किया?
तब तेरी ही भक्ति ने की थी,
तेरी रक्षा की तैयारी।
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
कभी वस्तु समझ, अधिकार समझ
तुझे खेल में दाँव लगा बैठे
मूक बने इन पुरुषों की,
मर्यादा क्या तब न हारी?
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
ले हाथों में शस्र-भाल, कृपाण कभी
लक्ष्मीबाई का अवतार बनी,
किया असमंजस में नर सेना को
शौर्य की नयी मिसाल बनी।
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
बनकर अरुंधति, पत्नी महर्षि वशिष्ठ की,
त्रिदेव को भी नतमस्तक किया,
बन कर गार्गी ब्रह्मवादिनी,
याज्ञवलक्य से शास्त्रार्थ किया।
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
न समय गँवा, तू व्यर्थ अभी,
पहचान स्वयं को, तू समर्थ सही।
ले कर कष्टों के विशाल पाषाण,
किया फतह हिमालय बार-बार।
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
फिर क्या संशय, क्या असमंजस है,
चंडी तू ही, तू ही काली
असुर मर्दिनी, अवतारी
सुन नारी! तू कब इन पुरुषों से हारी?
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टिप्पणियाँ
Shubhi agarwal 2019/08/18 02:04 PM
bhut khub........
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Sweta srivastava 2021/06/03 07:32 PM
Aurat purush se kabhi nhi hari