सुनिश्चित था
काव्य साहित्य | कविता रचनासिंह ’रश्मि’1 Mar 2019
थे अंजाने
एक दिन यूँ ही
टकराना तुमसे।
लगा जैसे रिश्तें हो
जन्मों के पुराने-से
न मैं जानूँ !
न तुम मुझे जानो
फिर भी लगते हो
जाने से।
मिलना हमारा
नियति था या संयोग?
हम एक दूजे से भिन्न
फिर भी
एक-दूजे के प्रति
खिंचाव-सा,
जैसे जन्मों की,
चाहत का वादा
शरीर मिटें
आत्मा से प्यार न मिटा
मिलें हम दोबारा
रूप-रंग बदल
तुमको देखकर
मन में जमीं
एहसासों की
बर्फ़ पिघलने लगी
याद आने लगा
तेरे हाथ से मेरे
हाथ का छूटना
मिलन की
अधूरी प्यास
तुम में समाहित हो जाऊँ
और तुम मुझमें खो जाओ
जन्मों की चाहत
आत्मा की आत्मा से तृप्ति
तन-मन का मिलन
अंजाने रिश्तों का संगम
पहले से
"सुनिश्चित"था।
यह अलौकिक बंधन
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