टीस
काव्य साहित्य | कविता योगेश कुमार ध्यानी22 Jan 2016
मैंने साँस भी नहीं ली
उस समय, जब तुम गोद में थे
सिर्फ़ इसलिए, कि तरंगे साँसों की
कहीं तोड़ ना दें क्रम
तुम्हारी नींद में उतरती हुई
सफ़ेद पोशाक पहनी परियों का
मैंने कोई अपेक्षा नहीं की
और ना ही रखी, कोई अबोली इच्छा
फिर क्यों, मन में
घास की तरह, स्वतः उग आए
सपनों के निःश्वास हो जाने पर
उठती है एक टीस
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