तेरी मर्ज़ी
काव्य साहित्य | कविता आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’31 May 2008
उधर ही चलेंगे जिधर ले चले तू।
हमें इससे क्या कि किधर ले चले तू॥
सही ले चले तू गलत ले चले तू।
न हो तेरी मर्ज़ी तो मत ले चले तू॥
नहीं ना नुकुर या कोई नाज़ नख़रा।
करेंगे कभी जिस डगर ले चले तू॥
पड़े बस रहेंगे यूँहि तेरे दर पर।
जो दर दर की ठोकर में सर ले चले तू॥
ज़मीं से जहन्नुम जहन्नुम से जन्नत।
है तेरी खुशी जिस भी घर ले चले तू॥
बड़े नासमझ हम ना समझें इशारा।
हिफ़ाज़त में अपनी मगर ले चले तू॥
कि कर ही चुके नैय्या तेरे हवाले।
किनारे लग या भँवर ले चले तू॥
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