कहाँ भारतीयपन
काव्य साहित्य | कविता आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’31 May 2008
परतन्त्रता की कट गईं शृंखलाएँ किंतु
परजीवीपन खूब पनपा है हम में॥
लालाटिक बन ताकते विदेशी ताक़तों को
अभी निजपन कहाँ पनपा है हम में॥
आँख हैं हमारी किंतु ख़्वाब सारे अमरीकी
अपना सपन कहाँ पनपा है हम में॥
पनपा बंगाली सिंधी मराठी पंजाबीपन
कहाँ भारतीयपन पनपा है हम में॥
भारत हुआ है बूढ़ा, सोया हिन्दुस्तान जवाँ
इंडिया हसीना हाय! बड़ी छेड़छाड़ है॥
चीन ने ली चुनरी उतार, तार तार करी
पाक चोली दाग दाग हुई मार धाड़ है॥
दहशतगर्द पाक-नाम ले जेहाद का यूँ
खून कर रहा हर, मजहबी आड़ है॥
मारकर सेंध देखो घुस आया कँगला बंग्ला
साफ साफ दामन को ताकने की ताड़ है॥
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