ठूँठा पेड़
काव्य साहित्य | कविता कविता झा15 Feb 2021 (अंक: 175, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
(बुज़ुर्ग पिता)
सड़क के किनारे खड़ा ठूँठा पेड़
आते जाते सब को देखता रहता
जीवन से ना-उम्मीद, दिशा हीन
चुप-चाप खड़ा रहता वो ठूँठा पेड़।
किसी ने लात मार ठुकराया उसे
तो किसी ने व्यर्थ बता दुत्कारा
फिर भी शांत बस आँसू बहाता
सब सुनता रहा वो ठूँठा पेड़।
भाव हीन, सूखा, नितांत बस खड़ा
बारिश में भीगता सिकुड़ता रहता
कड़ाके की धूप में और सूखता रहता
फिर भी खड़ा रहता वो ठूँठा पेड़।
ना मीठे फल, ना ही बची छाँव
ना रहा हौंसला, लड़खड़ाए पाँव
हिम्मत की गठरी नीचे उतार रख
वृद्ध खड़ा रहा वो शाश्वत ठूँठा पेड़।
कभी-कभी सोचता है ज़िंदगी छोड़ने का
फिर ख़ुद से जुड़ी अनेक बेलों को देख
अपने ग़म बिसरा, ख़ुश हो जाता है
नए जोश से भर जाता है वो ठूँठा पेड़।
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