तुम्हारे लिए
काव्य साहित्य | कविता आचार्य बलवन्त9 Dec 2014
रौनक फ़िजा की बहारों से लेकर,
हँसी जगमगाते सितारों से लेकर,
हसरत नदी की किनारों से लेकर,
तुम्हारे लिए कुछ लिखा हूँ मैं, पढ़ लो।
तुम्हारे लिए ही लिखा हूँ मैं, पढ़ लो।
तुम्हारे लिए मन की महफ़िल सजाकर,
मन में तुम्हारी ही मूरत बसाकर,
तुम्हारी ही यादों को दिल से लगाकर,
तुम्हारे लिए कुछ लिखा हूँ मैं, पढ़ लो।
तुम्हारे लिए ही लिखा हूँ मैं, पढ़ लो।
घिरना - घुमड़ना घटाओं से लेकर,
सिहरन नदी की हवाओं से लेकर,
ये मस्ती तुम्हारी अदाओं से लेकर,
तुम्हारे लिए कुछ लिखा हूँ मैं, पढ़ लो।
तुम्हारे लिए ही लिखा हूँ मैं, पढ़ लो।
मन में मुहब्बत की लेकर रवानी,
लेकर लहर से लहर आसमानी,
दिल से लिखा हूँ, जो दिल की कहानी,
तुम्हारे लिए ही लिखा हूँ मैं, पढ़ लो।
तुम्हारे लिए कुछ लिखा हूँ मैं, पढ़ लो।
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