उजले सपने धुंधली यादें
काव्य साहित्य | कविता लोकेश शुक्ला 'निर्गुण'28 Jan 2019
कुछ उजले-उजले सपने हैं
कुछ धुंधली-धुंधली यादें हैं
मेरे साथ सफ़र में और
सामान कुछ भी नहीं
जो तेरी रोशन आँखों में दिखे थे
जो तूने मुझसे ना कहे थे
बस वो ही हैं
मेरे साथ सफ़र में और
अरमान कुछ भी नहीं
मैं तेरा हूँ, तुझसे हूँ, तेरे लिए हूँ
बस ये ही है
मेरे साथ सफ़र में और
पहचान कुछ भी नहीं
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