वो औरत
काव्य साहित्य | कविता डॉ. विक्रम सिंह ठाकुर4 Jan 2016
याद आई वो औरत आज मुझे
जिसे कभी कुछ न दे सका मैं
जिसने ज़िन्दगी में शायद ही कोई ख़ुशी देखी थी
और जिसके मरने पे भी आँसू न बहा सका मैं
जिसने ख़ुद फ़ाक़े कर मेरी भूख मिटाई
जो रोती रही चुप चाप मुझे ख़ुशियाँ देने के लिए
जो हो गई बदनाम मुझे नाम देने के लिए
उतार दी थी जिसने अपनी सलवार मेरा जिस्म ढाँकने के लिए
याद आई बहुत वो आज मुझे
लौटा उसे दफ़ना के जब अपने घर मैं
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