ये आँखें
काव्य साहित्य | कविता रीना गुप्ता15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
अधखुली आहों से झाँकता
सूना भविष्य,
जिसको प्राप्त करने के लिए
प्रतिपल प्रगति करती
ये उँगलियाँ
थक चुकी हैं।
ना जाने कब चुपके से
गुज़र गयी बहार इनके
दामन से,
और, उसके रंजोग़म का
एहसास भी ना हो सका।
क्या करें जब प्रतिपल
दूर होतीं इन स्मृतियों
के साथ
इनका सूना जीवन भी
भाग रहा है,
अपने अंदर समेटे
गुमनाम भविष्य को।
क्या ये स्तब्ध
और एकटक देखती आँखों
से टपकता सूना भविष्य
इनके जीवन का ख़ालीपन
भर सकेंगी?
शायद ये अधखुली आँखें
सिर्फ चंद पलों का एहसास कर
पूर्णरूपेण बंद हो जाएँगी
खोखली लाश के समान
और रह जाएगा सिर्फ़
एक अंधा और निर्लज्ज भविष्य
बंद आँखों के पार
लाशों के कटघरे में।
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