ये झंडा पहचान बन जाए
काव्य साहित्य | कविता सुजीत कुमार संगम15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
थामूँ हाथ में झंडा
मेरी पहचान बन जाए
मेरी ये जान बन जाए
मेरा अभिमान बन जाए
वतन मेरा मुझे प्यारा
ये बातें आम करता हूँ
आऊँ काम मैं इसके
यही अरमान बन जाए
वीरों की है ये धरती
वतन पर जान देते हैं
कफ़न बन जाए ये झंडा
यही सम्मान बन जाए
कहता है वतन मेरा
किसी से बैर न करना
बढ़े जो दोस्ती का हाथ
यही पहचान बन जाए
मेरे इस देश की मिट्टी
ने नित प्यार ही बाँटे
मिलूँ जो ख़ाक में इसकी
मेरा सम्मान बन जाए
कहता है सुजित ये सुन
वतन से वैर मत करना
फ़ना हो जा वतन पर तो
ये फिर पैग़ाम बन जाए
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