आज की ख़ुशी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कैलाश नाथ खंडेलवाल15 Aug 2023 (अंक: 235, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
कितनी भी इच्छाएँ पूरी हो जाएँ
अभी और, अभी और की भूख,
कहाँ और कब मिटती है लोगों की,
सदा विपन्नता ही दिखाते देखा है।
मैंने फक्कड़ों को खिलखिलाते देखा है
जो ठहाके लगाते हैं दिल खोलकर,
अमीरों की देखी हैं मायूस मुस्कुराहटें,
बड़े यत्न करके ही उनको हँसते देखा है।
धन दौलत, जायदाद, औक़ात, नहीं हैं ये
मानक चेहरे पर मुस्कान या मायूसी के,
ये तो मन के भाव हैं, जब जैसे हो जाएँ,
महलों में दुख, ख़ुशी कुटिया में बस जाए।
जितना भी हो, चाहे कम हो, है पर्याप्त
यही संतोष रहे, दुख से पाला नहीं पड़ेगा,
देने वाले ने खोल दिए हैं दुख सुख के भंडार
अब ये हम पर है उसमें से हम क्या छांटें।
मित्र, जो है, जितना है उसका आज ही आनंद मना ले,
न होने के ग़म में आज की ख़ुशी यूँ ही व्यर्थ न गँवा दे!
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