ऐ जिंदगी: मानवीय अनुभूतियों और संवेदनाओं का सुंदर मिश्रण
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा राजेश रघुवंशी15 Nov 2023 (अंक: 241, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: ऐ ज़िन्दगी (काव्य-संग्रह)
कवि: अनिरुद्ध चेऊलकर
वर्ष: (प्रथम संस्करण:३० सितंबर, २०२३)
प्रकाशक:सौ. सोनाली गजानन शिंदे, सृजनसंवाद प्रकाशन,
१९बी विंग, मालकंस सोसाइटी, चरई, ठाणे (प /) महाराष्ट्र ४००६०२
मूल्य: ₹२००.००
कवि अनिरुद्ध चेऊलकर जी का प्रथम काव्य संग्रह ‘ऐ जिन्दगी’ सृजनसंवाद प्रकाशन, १९बी विंग, मालकंस सोसाइटी, चरई, ठाणे (प) महाराष्ट्र ४००६०२ द्वारा ३० सितंबर, २०२३ को प्रकाशित हुआ है। वैसे तो अनिरुद्ध जी की रचनाएँ हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘मेरी निहारिका’ में समय-समय पर प्रकाशित होती ही रहती हैं। साथ ही शब्दग्राम, शब्दसिंधु, माँ शारदे जैसे साहित्यिक मंचों द्वारा भी वे पुरस्कृत और अनेकों प्रशस्तिपत्रों से सम्मानित होते रहे हैं। एक बेहतरीन फोटोग्राफर और पर्यावरण प्रेमी होने के साथ-साथ घुमक्कड़ प्रवृत्ति आपके व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं। इन विशेषताओं का आपकी रचनाओं पर भी गहन प्रभाव दिखाई देता है।
प्रस्तुत काव्य-संग्रह में आपकी कुल ६५ कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं में मानवीय अनुभूतियों और संवेदनाओं का महासागर हिलोरें लेता हुआ पाठकों को अपने साथ बहा ले जाने को विवश कर देता है।
काव्य-संग्रह की पहली ही कविता ‘अमृत भारत’ राष्ट्रीय भावनाओं से पूर्ण भाईचारे, एकता और प्यार का संदेश देती हुई हमारे सामने आती है। ‘आसमान तक’ कविता माता-पिता की बालक जीवन में महत्ता बतलाते हुए हर व्यक्ति को राह स्वतः चुनने की सलाह भी देती है:
“उँगली पकड़कर चलना सिखाया
कंधे पर बिठाकर मेला दिखाया॥” (पृ.सं. १२)
“तुम्हें जो प्यारी लगे, वहीं राह बुनो।” (पृ.सं. १२)
कुछ इसी प्रकार का स्वर उनकी ‘मेरी माँ’ कविता में भी दिखलाई देता है। ‘पुरुष’ कविता में पुरुष की अंतरवेदना और परिवार के प्रति उसकी कर्त्तव्य भावना का बेहद सुंदर चित्रण किया है।
‘ऐ जिन्दगी’ कविता इस संग्रह की तीसरी और काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविता है। जहाँ कवि जीवन संघर्षों की बात कहकर हर हाल में ज़िन्दगी जीने का आवाहन करता है। यथा:
“ये एक सच, अपना जिसे हम कह सकते हैं,
बाक़ी सब झूठ, मरते दम तक साथ है ये ज़िन्दगी।” (पृ.सं. १३)
‘जाने के बाद’ कविता में उन्होंने वर्तमान समय में व्यक्ति स्वभाव और विचारों में आने वाले परिवर्तनों का जीवंत वर्णन किया है। कविता की कुछ पंक्तियाँ तो मनुष्य के स्वार्थी भावों की पोल ही खोलकर रख देती है। जैसे:
“हवाओं को कौन याद करता है?
मौसम बदलने के बाद।” (पृ.सं. ६५)
वहीं दूसरी ओर, कवि ने ‘कस्तूरी मृग’ कविता में आज के समय में मनुष्य किस प्रकार भीतरी सुखों का त्याग कर बाहरी वस्तुओं में सुख ढूँढ़ने की नाकाम कोशिशें करता रहता है, उस परिस्थिति को बख़ूबी उजागर किया है। आज का मनुष्य अपने पास के सुखों को छोड़ कस्तूरी मृग की तरह जीवन भर बाहरी मृग तृष्णा में भटकते हुए निरर्थकता का अनुभव करता है।
प्रस्तुत संग्रह में उनकी प्रेमपूर्ण कविताएँ पाठकों को अत्यंत भावुक और प्रभावित कर देती हैं। जैसे ‘काश कि वो आ जाए’ कविता में कवि लिखते हैं:
“ठंडे कोहरे में उनकी याद सताए,
ओस बूँदें पंखुड़ियाँ सजाए।
अकेलापन बादलों जैसा, छा जाए।
तब दिल चाहे, काश कि वो जाए॥” (पृ.सं. १४)
‘खिलवाड़’ कविता में वे स्पष्ट कहते हैं कि:
“जो समझे दिल की ख़ामोशी
बड़ी मुश्किल से मिलता है ऐसा दिलबर।
बाक़ी सब छलावा है लफ्ज़ों का।” (पृ.सं. १५)
‘तुम याद आये’ कविता में कवि जीवन की कड़ी धूप में अपने प्रेम को जीवन का आधार मानकर निर्भीकता से कह उठता है:
“कभी नश्तर, कभी रूहानी सुख एहसास हो तुम,
ये कहूँ कि मेरे दिल की धड़कन, मेरी साँस हो तुम
रहो दूर या पास, मेरे रोम रोम विश्वास तुम
मेरी ज़िन्दगी की नींव, मेरे जीने की प्यास तुम।” (पृ.सं. १७)
प्रेम की सच्ची परीक्षा तो विरह में ही होती है। विरह वेदना जितनी अधिक तीव्र होती है, प्रेम उतना ही व्यापक होता है।
कवि भी प्रेम में विरह को महत्त्वपूर्ण मानते हुए ‘पतझड़’ कविता में लिखता है:
“जुदाई की रात में हो जितने ज़्यादा अँधेरे,
मिलन के पल भी उतने ही हसीन होंगे।” (पृ.सं. १९)
उनकी एक अन्य कविता ‘साएं’ में विरह वेदना का गहनतम स्वरूप दिखाई देता है:
“शाम के सायों में कुछ नमी सी है,
दिल में तेरी याद थमी सी है।
कोहरे की धुँध में ढूँढ़ता हूँ तुम्हें,
आज ज़िन्दगी में कुछ कमी सी है।” (पृ.सं. ६७)
‘प्यार’ कविता में कवि ने प्रेम की परिभाषा का सटीक विश्लेषण किया है। परिवार की सभी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करने वाली पत्नी से जब पति शिकायत करता हुआ कहता है कि तुम्हें प्रेम करना तो आता ही नहीं है। इसपर पत्नी का घर की ज़िम्मेदारियों को बताते हुए प्रश्न पूछना हर गृहस्थ नारी की समस्या से पाठकों को अवगत करवाता है। एक पत्नी के लिए प्रेम केवल व्यक्तिगत ही नहीं वरन् ज़िम्मेदारियों से युक्त होकर सामने आता है। उन ज़िम्मेदारियों की पूर्णता भी वह प्रेम के वशीभूत होकर ही करती है। लेकिन जब पति उसके इस निःस्वार्थ प्रेम पर प्रश्नचिह्न लगाता है तो वह सीधे पूछ लेती है:
“एक बात कहूँ?
ये सब जो मैं करती आई हूँ,
ज़रा बताइए, आप इसे क्या कहेंगे?” (पृ.सं. ७१)
‘शुक्रिया’ कविता में कवि जीवन में जो कुछ भी प्राप्त हो, उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने की बात कहता है:
“बात छोटी हो या बड़ी,
शुक्रिया कहूँ, ये आदत है मेरी।
या यूँ समझो,
एक अलग सी इबादत है मेरी।” (पृ.सं. ३०)
‘बचपन’ कविता में कवि ने बचपन का बहुत ही मानवीकरण रूप प्रस्तुत किया है। यथा:
“गली में अचानक बचपन मिल गया,
गले लगाया, प्यार से सहलाया,
पूछा, कहाँ खोया था मेरे दिलबर?” (पृ.सं. ४६)
‘खामोशियां’ कविता में ख़ामोशी ढेरों अनकही बातों को कहने का प्रयास करते हुए हमारे सामने आती है:
“खामोशियां सुनाती हैं कुछ अनकही बातें,
सन्नाटे बयाँ करते हैं कहानियाँ गहरी।” (पृ.सं. ५४)
‘वक़्त’ कविता में वक़्त की महत्ता दर्शायी है। इस कविता की कुछ पंक्तियाँ तो कालजयी ही बन गई हैं। दो पंक्तियाँ उदाहरणार्थ:
“वक़्त के पाँव नहीं थमते।” (पृ.सं. ५१)
“रेत पर एक लकीर है लम्हा।” (पृ.सं. ५१)
‘बरसातें’ कविता में कवि बरसात और मनुष्य-हृदय का तादात्म्य स्थापित करते हुए कहता है:
“अकेला हूँ अकाल बन गई है ये दूरियाँ,
बंजर पड़ी है मेरे दिल की ये धरा।
छूटने दे मर्यादा, टूटने दे सब बंधन,
ऐसी बरस की,
हो जाए हर एक ख़्वाब पूरा।” (पृ.सं. ५९)
‘वसुंधरा’ कविता में कवि का पर्यावरण के प्रति प्रेम और चिंता मन को सहज ही भा जाती है:
“सूखी नदियाँ, सूखे झरने
सूखा कुआँ, सूखे पड़े तालाब।
सागर के पानी में बढ़े हरदम
ज़हर, प्लास्टिक, कूड़ा कचरा।
हवा में भरी है धूल, प्रदूषण
संकट है ये गहरा।” (पृ.सं. ६१)
समग्र रूप से कहा जा सकता है कि कवि अनिरुद्ध जी की कविताएँ मानवीय भावों से भरी हुई हैं और पाठकों की संवेदनाओं से आसानी से एकात्म स्थापित कर जाती हैं। सहजता प्रस्तुत काव्य भाषा की सर्वोपरि विशेषता है। यद्यपि भाषा संबंधी कुछ त्रुटियाँ अवश्य दिखलाई देती हैं पर ये त्रुटियाँ कहीं भी रस ग्रहण में बाधक सिद्ध नहीं होती।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"कही-अनकही" पुस्तक समीक्षा - आचार्य श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी
पुस्तक समीक्षा | आशा बर्मनसमीक्ष्य पुस्तक: कही-अनकही लेखिका: आशा बर्मन…
'गीत अपने ही सुनें' का प्रेम-सौंदर्य
पुस्तक समीक्षा | डॉ. अवनीश सिंह चौहानपुस्तक: गीत अपने ही सुनें …
सरोज राम मिश्रा के प्रेमी-मन की कविताएँ: तेरी रूह से गुज़रते हुए
पुस्तक समीक्षा | विजय कुमार तिवारीसमीक्षित कृति: तेरी रूह से गुज़रते हुए (कविता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं