बेकार की बातें
कथा साहित्य | लघुकथा राजेश रघुवंशी1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
"सुनिए जी, बेटा कुछ कमज़ोर-सा लग रहा है। खाना भी आजकल बराबर नहीं खा रहा है। कामवाली बाई कह रही थी कि इसे शायद नज़र लग गयी है। अगर नज़र उतारेंगे तो ठीक हो जायेगा बच्चा।"
पत्नी की बात सुनकर सहसा सुनील को जब माँ जीवित थी,तब की बात याद आ गयी।
उन दिनों माँ अपने पोते की हर दो-चार दिनों में नज़र उतारा करती थीं और जिस दिन वे नज़र उतारा करतीं, उस दिन घर में विवाद होता। पत्नी जी को इन सब बेकार की बातों में विश्वास नहीं था। वह माँ के इन कार्यो को दक़ियानूसी बातें कहकर सुनील से अक़्सर सुशिक्षित होने की बात कहा करती। सुनील के लाख मना करने के बावजूद भी माँ चुपचाप यह कार्य किया करती। उन्होंने कभी बहू से इसपर बात नहीं की। जानती थीं कि जिन्हें विश्वास नहीं, उन्हें समझाकर भी क्या फ़ायदा।
आज अचानक जब पत्नी जी ने नज़र उतारने वाली बात कही तो सुनील ने 'बेकार की बातें' कहकर टाल दिया। देर रात पत्नी जी के सोने पर सुनील ने धीरे से अपने बेटे के चेहरे पर स्नेह से हाथ घूमा मन-ही-मन माँ का स्मरण कर बेटे के ठीक होने की कामना की। अगले दिन बेटा पहले से बेहतर लग रहा था। बात तो विश्वास की ही थी न।
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