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आख़िर कब लगेगा नशों पर अंकुश? 

हैरत की बात है कि हमारे समाज में नशों का आतंक लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ग़ौर हो कि पहली बार नशा करने पर आदमी को सुकून सा अनुभव होता है। उसको एक अजीब सी ख़ुशी का अहसास होता है। वह अलग दुनिया में पहुँच जाता है। लगातार पाँच-दस दिन नशे का सेवन करने पर व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक तौर पर इसका आदी होना शुरू हो जाता है और लगभग तीन-चार सप्ताह में वह नशे का ग़ुलाम हो जाता है। नशा न मिलने पर कई तरह की तकलीफ़ें महसूस करता है। उन तकलीफों को दूर करने के लिए उसे फिर उसी नशे का प्रयोग करना पड़ता है और इस तरह से वह पूर्ण रूप से नशे के शिकंजे में जकड़ जाता है और अपने आप को यदि वह इससे छुड़ाना भी चाहे तो असहाय अनुभव करता है। 

उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इन दिनों कॉलेज और स्कूल में पढ़ने वाले कई नौजवानों को नशे की इतनी लत है कि दुकानदारों से चाय बनवाते समय अपनी जेब में से चूरा पोस्त निकाल कर डालने के लिए देते हैं। कॉलेज और स्कूल में पढ़ने वाले यह नौजवान तंबाकू, बीड़ी-सिगरेट, अफ़ीम, स्मैक आदि का भी सेवन करते हैं। कई नौजवानों की जेब में जरदे की पुड़िया तो हर समय ही रहती है। नौजवानों के साथ-साथ बच्चे और बुज़ुर्ग भी नशे का सेवन करते हुए देखे जा सकते हैं। आजकल बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू जरदा, शराब, अफ़ीम आदि नशे तो आम बात हो गई है। इस तरह के नशे करने वाले को नशेड़ी नहीं कहा जाता। आज के इस युग में नशेड़ी उसे कहते हैं जो स्मैक और हेरोइन का नशा करता है। बड़े ही दुख की बात है कि आज भारत में ऐसे नशेड़ियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। अगर अभी से ही इस समस्या की ओर ध्यान न दिया गया तो आगामी दिनों में हमारा भारत नशेड़ियों का भारत बन जाएगा। 

एक अनुमान के अनुसार पिछले छह महीने में अकेले दिल्ली में ही पाँच सौ करोड़ रुपए का मादक पदार्थ पकड़ा जा चुका है। जब देश की राजधानी में इतना बुरा हाल है तो फिर देश के अन्य हिस्सों का क्या हाल होगा? देश का अन्नदाता कहलाए जाने वाला राज्य पंजाब आज नशों से जकड़ा हुआ है। ग़ौर हो कि पंजाब के अस्सी प्रतिशत युवा नशे की चपेट में हैं। उधर पंजाब में बेरोज़गारी भी बहुत है और ऐसी स्थिति में यह बात सोचने को मजबूर करती है कि नशा करने के लिए युवाओं के पास धन कहाँ से आता है? अफ़सोस होता है कि इस ख़ुशहाल सूबे का बड़ा वर्ग नशों का धड़ल्ले से प्रयोग कर रहा है। मुझे समझ में नहीं आता है कि नशों के कारण युवा वर्ग ग़लत मार्ग की ओर भटक कर गुनाहों की दलदल में क्यों धँसता जा रहा है? 

दुर्भाग्य से नशों का इस्तेमाल टॉनिक की तरह किया जा रहा है। हमें यह ध्यान में रखना होगा कि नशे न तो किसी प्रकार के पौष्टिक टॉनिक हैं एवं न ही मानसिक क्षमता बढ़ाने वाले हैं। दरअसल, नशे एक प्रकार के हलके विष हैं जो तात्कालिक स्फूर्ति एवं क्षणिक मानसिक उत्तेजना मात्र देते हैं। मात्र थकान मिटाने व बोरियत भगाने के लिए इनका सेवन किया जा रहा है। ध्यान रहे कि नशे का सेवन करने वाला धन भी खोता है और अमूल्य जीवन भी। दरिद्रता उससे आ लिपटती है एवं बीमारियाँ पीछा नहीं छोड़तीं। 

बचपन में मैंने एक फ़िल्म देखी थी (फ़िल्म का नाम मुझे याद नहीं) जिसमें एक शराबी नायक एक दिन होश में आने पर ख़ाली जाम में हाथ की अंगुली डालकर सोचता है कि इस प्याले की इतनी छोटी सी गहराई में उसका मकान, ज़मीन, बाप दादा की कमाई आदि सब कुछ डूब गया। दरअसल, नशा चीज़ ही ऐसी है जो बड़ी-बड़ी हस्तियों को आसमान से ज़मीन पर पटक देता है। नशा करने वाला तो दोषी है ही, साथ ही नशीले पदार्थ बेचने वाले ज़्यादा दोषी हैं। वैसे तो नशीले पदार्थ बेचने वालों के लिए काफ़ी सख़्त ऐन.डी.पी.सी. क़ानून बनाया गया है। क़ानून में सख़्त सज़ा का प्रावधान है। परन्तु क़ानून का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो रहा है। क़ानून बनाने के बाद उसे यदि सही तरीक़े से लागू किया जाए, उसका पालन किया जाए तो उसका परिणाम भी अच्छा हो सकता है। ग़ौर हो कि ऐन.डी.पी.सी. एक्ट के तहत ड्रग्स लेने वाले को 6 माह, ड्रग्स रखने वाले को 10 वर्ष से कम और ड्रग्स बेचने वाले को 10 वर्ष की सजा होती है। ऐन.डी.पी.सी. एक्ट की जानकारी आम आदमी को ज़रूर होनी चाहिए जिससे आम नागरिक नशीले पदार्थों के सेवन से डरेगा। क़ानून को सही ढंग से इस्तेमाल कर नशीले पदार्थों की बिक्री पर रोक लगाना सम्भव है। इसके अलावा नशे के बुरे प्रभावों के सम्बन्ध में लोगों को जागरूक करने की भी आवश्यकता है। हमें भी प्रण लेना चाहिए कि इन नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करेंगे और अपने इस अमूल्य जीवन को नशों में गवाने की बजाए देश के विकास में लगाएँगे। 

नशा हारे समाज के माथे पर कलंक है। नशे के प्रचलन का मुख्य कारण यह है कि नशा आसानी से उपलब्ध होता है। आजकल ज़्यादातर करियाने की दुकानों और नशा बेचने वाले खोखे पर यह आसानी से उपलब्ध है और हमारी सरकार ख़ामोश है। वैसे सरकार के द्वारा बहुत से नशा छुड़ाओ केंद्र खोले हुए हैं, लेकिन फिर भी हक़ीक़त यही है कि पंजाब के अस्सी प्रतिशत युवा नशे की चपेट में हैं। मैं मानता हूँ कि सरकारी तथा ग़ैर-सरकारी संगठनों द्वारा नशा छुड़ाओ कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनका कुछ हद तक फ़ायदा भी हो रहा है। लेकिन यह भी सच्च है कि कई केंद्र नशा छुड़ाने के नाम पर लोगों को ठग रहे हैं। ऐसा करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ सरकार को अभियान चलाना चाहिए और पकड़ कर सख़्त से सख़्त सजा दी जानी चाहिए। 

अपनी कथित उपलब्धियों पर बार-बार अपनी ही पीठ थपथपाने वाली सरकार क्या इस दिशा में कुछ सोचेगी? सरकार को चाहिए कि वह स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक प्रणाली को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे इन नशों की बिक्री पर पाबंदी लगाए। कुल मिलाकर नशे की प्रवृति का लगातार बढ़ते रहने का मुख्य कारण सरकार ही है। दरअसल हमारी सरकार ही नहीं चाहती कि नशे का राक्षस ख़त्म हो क्योंकि नशों से ही सरकार को सबसे ज़्यादा आमदनी होती है। हमारी सरकार उस मसीहा के समान है जिसके बारे में यही कहा जा सकता हैः

आपने ऐसा मसीहा भी कभी देखा है क्या? 
ज़ख़्म देकर जो पूछे दर्द सा होता है क्या?
 

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