नसीब
काव्य साहित्य | कविता अमित कुमार लाडी12 Jul 2008
एक भिखारी कह रहा था
अपने छोटे से बच्चे को,
मेरा राजा बेटा बन कर
खा ले, जो है वो खा ले।
आज लिखा था नसीब में अपने ‘लाडी’
बस यही एक रोटी का टुकड़ा,
जो है तेरे हाथ में
खा ले, मेरे बच्चे इसको खा ले।
इससे पहले कि कोई
जानवर आ जाए,
और अपने नसीब का
यह टुकड़ा भी ले जाए,
खा ले बच्चे, इसको खा ले।
जो है तेरे हाथ में,
खा ले, मेरे बच्चे इसको खा ले।
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