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औरत की ज़िन्दगी

 

ज़िन्दगी औरत की एक खुली किताब है,
कभी बेबस तो कभी लाचार है।
फिर भी कह नहीं सकती यह किसी भी हाल में
क्योंकि औरत ख़ुद ब ख़ुद में एक मिसाल है।
 
यूँ ही नहीं कहते इसे दस भुजा धारी,
इस हाथ में कड़छी तो दूजे में पूरा संसार है।
लोग रखना चाहते हैं उसे अपने पैरों तले
और ढूँढ़ना चाहते हैं माँ लक्ष्मी के पैरों के निशान हैं।
 
सब जानते हैं कि न है कोई दोष उसका
फिर न जाने क्यों दुनिया उसके ख़िलाफ़ है।
मज़ा आता है सबको 
औरत को बेइज़्ज़त होता देखकर
और फिर भी उस औरत के सर पर 
घर की इज़्ज़त का सारा भार है।
 
आज भी नीलाम होती है औरत
हर गली मोहल्ले में
और एक मर्द कहता है कि
इस पर तो सिर्फ़ मेरा अधिकार है।
कहने को तो एक मर्द के अंदर
मर्दानगी का अहंकार है
फिर भी एक औरत से घर की
इज़्ज़त का ढिंढोरा पिटता सरे-बाज़ार है।
 
सच कहूँ तो
एक औरत की ज़िन्दगी एक खुली किताब है
जिसकी लाचारी का मज़ा
लेने के लिए कोई और ज़िम्मेदार है।

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