बच्चा ही अच्छा
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता नरेन्द्र सिंह ‘नीहार’15 Apr 2025 (अंक: 275, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
क्या-क्या सपने देख रही हैं,
ये सपनीली आँखें।
ज़रा ठहर ओ मेरे बचपन!
दोस्त मेरे ओ बाँके।
बड़ा नहीं बनना चाहूँ मैं,
छोटा ही अच्छा हूँ।
सबका प्यारा राजदुलारा,
नटखट हूँ, बच्चा हूँ।
माँ का बेटू, बहन का छोटू,
आलस मुझे अखरता।
पापा की आँखों का तारा,
धमाचौकड़ी करता।
दिनभर खेलकूद औ मस्ती,
बहे प्यार की गंगा।
खाना-पीना, मौज मनाना,
बचपन है अतरंगा।
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