नाना जी
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता नरेन्द्र सिंह ‘नीहार’15 Apr 2025 (अंक: 275, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
फूलों वाला कलियों वाला,
और मटर की फलियों वाला।
मीठे गन्ने, लाल चुकन्दर,
बाग़ बग़ीचे जिसके अन्दर।
देश हमें दे जाना जी,
ओ! भारत के नाना जी।
पर्वत घाटी मैदानों में,
खेत, खलिहान, खदानों में।
झरते झरने बहती नदियाँ,
हर्षित पुलकित गाँव औ गलियाँ।
सबका ठौर ठिकाना जी।
ओ! भारत के नाना जी।
हम सबके हैं सभी हमारे,
नील गगन के चाँद सितारे।
प्यार भरी बातों की सरगम,
ख़ुशियाँ पाकर चहके हरदम।
हर कोई रहे दीवाना जी,
ओ! भारत के नाना जी।
स्वच्छ हवा और शुद्ध पानी,
हरियाली संग फ़सलें धानी।
चाँद के भीतर चरखा-दादी,
बर्फ़ घिरी हर चोटी-वादी।
देना सभी ख़ज़ाना जी,
ओ! भारत के नाना जी॥
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