बदली निगाहें वक़्त की क्या क्या चला गया
शायरी | ग़ज़ल देवमणि पांडेय15 Dec 2019 (अंक: 146, द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)
बदली निगाहें वक़्त की क्या क्या चला गया
चेहरे के साथ साथ ही रुतबा चला गया
बचपन को साथ ले गईं घर की ज़रूरतें
सारी किताबें छोड़कर बच्चा चला गया
मेरी तलब को जिसने समंदर अता किया
अफ़सोस मेरे दर से वो प्यासा चला गया
वो बूढ़ी आँखें आज भी रहती हैं मुंतज़िर
जिनको अकेला छोड़कर बेटा चला गया
रिश्ता भी ख़ुद में होता है स्वेटर की ही तरह
उधड़ा जो एक बार, उधड़ता चला गया
अपनी अना को छोड़ के पछताए हम बहुत
जैसे किसी दरख़्त का साया चला गया
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