अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

चश्मे का अंधापन

कौन सा चश्मा लगाएँगे हुज़ूर
हर चश्मे की अपनी 
एक दुनिया निराली है
इन्हें लगाएँगे तो बदल जाएगी
आपके लिए 
पूरी दुनिया ही। 
 
हर रंग हर क़िस्म में 
बिक रहें हैं ये चश्मे
जिनको बेचने के लिए 
हैं लगाए हुए
हर ख़ेमे ने अपने अपने काउंटर
हर काउंटर पर हैं
धमाकेदार ऑफ़र्स
तो फिर क्यों मना करेंगे आप
इन अनोखे चश्मों को 
आँखों पर लगाने से। 
 
कोई दाम नहीं 
कोई क़ीमत नहीं
बस एक ही औपचारिकता 
देनी पड़ेंगी आँखें आपको 
इन चश्मों के लिए
पर घबराइए नहीं
क्योंकि इससे हल्का हो जाएगा
काम आपका ही
आपकी जगह देखेंगे ये चश्में 
अपने रंग से इस संसार को
और आप बने दर्शक
आनंद उठाइए अतरंगी दुनिया का
बिना किए मेहनत 
रंगों को पहचानने
या चुनने की। 
 
फ़ायदे का सौदा है जनाब
ले लीजिए कोई भी चश्मा
अपनी पसंद के रंग का
और लगाकर उस चश्मे को
हो जाइए आँख के अंधे
हमारे समाज में
जो पहले ही 
हो चुका धृतराष्ट्र है! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अतिथि
|

महीने की थी अन्तिम तिथि,  घर में आए…

अथ स्वरुचिभोज प्लेट व्यथा
|

सलाद, दही बड़े, रसगुल्ले, जलेबी, पकौड़े, रायता,…

अनंत से लॉकडाउन तक
|

क्या लॉकडाउन के वक़्त के क़ायदे बताऊँ मैं? …

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

दोहे

ग़ज़ल

लघुकथा

कहानी

किशोर साहित्य कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं