चश्मे का अंधापन
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता क्षितिज जैन ’अनघ’1 Dec 2022 (अंक: 218, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
कौन सा चश्मा लगाएँगे हुज़ूर
हर चश्मे की अपनी
एक दुनिया निराली है
इन्हें लगाएँगे तो बदल जाएगी
आपके लिए
पूरी दुनिया ही।
हर रंग हर क़िस्म में
बिक रहें हैं ये चश्मे
जिनको बेचने के लिए
हैं लगाए हुए
हर ख़ेमे ने अपने अपने काउंटर
हर काउंटर पर हैं
धमाकेदार ऑफ़र्स
तो फिर क्यों मना करेंगे आप
इन अनोखे चश्मों को
आँखों पर लगाने से।
कोई दाम नहीं
कोई क़ीमत नहीं
बस एक ही औपचारिकता
देनी पड़ेंगी आँखें आपको
इन चश्मों के लिए
पर घबराइए नहीं
क्योंकि इससे हल्का हो जाएगा
काम आपका ही
आपकी जगह देखेंगे ये चश्में
अपने रंग से इस संसार को
और आप बने दर्शक
आनंद उठाइए अतरंगी दुनिया का
बिना किए मेहनत
रंगों को पहचानने
या चुनने की।
फ़ायदे का सौदा है जनाब
ले लीजिए कोई भी चश्मा
अपनी पसंद के रंग का
और लगाकर उस चश्मे को
हो जाइए आँख के अंधे
हमारे समाज में
जो पहले ही
हो चुका धृतराष्ट्र है!
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