महामारियों के इस दौर में
काव्य साहित्य | कविता क्षितिज जैन ’अनघ’15 Jun 2022 (अंक: 207, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
महामारियों के इस दौर में
मानव ग्रसित है
एक और महामारी से
जो है मीठे गरल-से भ्रम की
जिससे पीड़ित आदमी को
लगता है ठग लेगा वह दुनिया को
लगता है बच जाएगा वह
करके सारे पाप
लगता है चढ़ती रहेगी उसकी
काठ की हाँड़ी
झूठ के चूल्हे पर
लगता है सफल होंगे
उसके सारे फ़रेब . . .
और इसीलिए वह दिन रात
बोलता है सफ़ेद झूठ
औरों को ठगने की ख़ुशफ़हमी में
ठगता है ख़ुद को प्रतिपल
और फिर रोनी सूरत बनाकर
कहता चार लोगों के बीच
क्या करें भाईसाहब
ज़माना बहुत ख़राब है . . . . . .
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