चीनी वाली गोलियाँ
कथा साहित्य | लघुकथा अनुराग1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
“पापा मुझे भी चीनी वाली गोलियाँ चाहिएँ,” कहकर मोनू रोने लगा।
“नहीं बेटा, ये तो दवाई है, ये बीमार होने पे खायी जाती है,” कहते हुए रामु ने मोनू को गोद में उठा लिया और उसके आँसू पोंछने लगा। दोनों अपने घर की खिड़की से बाहर देख रहे थे। एक समाजसेवी होम्योपैथिक डॉक्टर लोगों को मुफ़्त में दवाइयाँ बाँट रहा था। बाढ़ ने गाँव को बर्बाद कर दिया था। लोगों को भरपेट खाना भी नहीं मिल रहा था।
“मोनू के पापा, मोनू सुबह से घर में नहीं है,” अपनी पत्नी की आवाज़ सुनकर रामु घबराकर उठा। उसका रो-रो कर बुरा हाल होने लगा। बाहर भारी बारिश हो रही थी और पाँच साल का बच्चा घर से ग़ायब था। तभी दरवाज़े की कुण्डी बजी। मोनू की मम्मी दौड़कर दरवाज़ा खोलने गयी। उसके सामने मोनू खड़ा था। वो ठण्ड से काँप रहा था।
उसने मोनू को गोद में उठा लिया। मोनू को तेज़ बुख़ार था।
रामु ने मोनू से पूछा, “इतनी तेज़ बारिश में बाहर क्यों गए थे?”
मोनू ने कहा, “पापा अब तो चीनी वाली गोलियाँ मिलेंगी न!”
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