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चिड़िया

 

वह चिड़िया आकाश में, 
उड़ती जाती पंख पसार। 
कौन भला छीनेगा उससे, 
ऊँचे उड़ने का अधिकार। 
 
सुबह-दोपहर उड़ती रहती, 
कभी रुकी और थमी नहीं। 
डैने उसके छोटे-छोटे, 
पर हिम्मत की कमी नहीं। 
 
दूर गगन में चहक-चहक कर, 
हवा से करती है बातें। 
बादल से भी करनी होती, 
उसको रोज़ मुलाक़ातें। 
 
यहाँ वहाँ से दाना चुगती, 
नदी किनारे भी जाती। 
पर्वत की चोटी पर चढ़कर, 
झरने का पानी पी आती।
  
थक जाती है कभी-कभी तो, 
खेला करती फुदक-फुदक। 
छत की मुँडेर से झाँका करती, 
आँगन में वह उचक-उचक। 
 
हुई शाम अब धिरा अँधेरा, 
चिड़िया चली पेड़ की डाल। 
क्या कल भी तुम आओगी? 
बच्चे पूछें यही सवाल। 

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