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दादी कब आएगी

 

दृश्य एक: 
महालक्ष्मी अपार्टमेंट फ़्लैट नंबर 906

“तुम लोग क्या कर रहे हो वहाँ,” भावना ने घर में घुसते ही चिल्लाना शुरू कर दिया, जब उसने देखा कि आदि और लवी दोनों दादी के कमरे में उनके बिस्तर पर उनसे चिपके हुए बैठे हैं। 

“मॉम, माँ बड़ी अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाती है।” आदि और लवी की दादी अपने आपको को ‘माँ’ कहलवाना ज़्यादा पसंद करती थीं। “बस अभी आते हैं कहानी पूरी होने वाली है,” लवी ने बैठे-बैठे ही जवाब दिया। 

“कोई ज़रूरत नहीं, चल कर अपना होमवर्क करो, ये कहानियाँ–वहानियाँ छोड़ो कुछ नहीं पड़ा इसमें; चलो जल्दी चलो,” भावना दोनों को खींचती हुई रूम से बाहर ले आई। 

शाम को नाराज़ बच्चों को ख़ुश करने के लिए भावना उन्हें पिज़्ज़ा हट ले गई अपनी पसंद की चीज़ें पाकर दोनों बहुत ख़ुश थे। 

“क्यों कैसा लगा पिज़्ज़ा,” भावना ने बच्चों के मन को टटोला। “या फिर वह तुम्हारी दादी माँ का (माँ शब्द पर ज़ोर देते हुए) गुड़ का हलवा अच्छा था, जो उन्होंने सुबह बनाया था, हे भगवान, और तुम दोनों टूट पड़े थे उस पर!” भावना के चेहरे पर हैरत के भाव थे। 

“वो तो हम ऐसे ही,” दोनों बच्चों को लगा कहीं पिज़्ज़ा छीन ही न लिया जाए। 

भावना जानती थी बच्चों को कैसे बहलाना बनाना चाहिए पर आजकल लवी और आदि बड़े अजीब-अजीब प्रश्न पूछने लगे थे, “मॉम ये कंस कौन था आपको पता है क्या? और वो रावण कितना बुरा था ना? आपने तो कभी बताया ही नहीं।”

और जब से उनकी दादी माँ आई है दोनों उन्हीं के कमरे में घुसे ही रहते हैं।

भावना मन ही मन सोचने लगी ‘ज़माना कितना आगे निकल गया है और यह बच्चों की दादी माँ, बाप रे बाप कहीं बच्चों के दिमाग़ में कुछ ऊलजलूल न भर दे। एक सप्ताह पहले जबसे भावना की सास आई है घर में टी.वी. वीडियो गेम, मोबाइल गेम, लैपटॉप बच्चों की तो जैसे किसी में रुचि ही नहीं बची। 

सुबह उठते ही पोता-पोती दादी माँ से पुरानी स्टाइल में आशीर्वाद लेकर स्कूल जाने लगे हैं और स्कूल से आकर दादी ‘माँ’ के हाथ के पकवान चाहिएँ अब उन्हें। 

और बड़े सुनियोजित टाइम से अपने स्कूल का होमवर्क करके कभी रामायण तो कभी गीता लेकर दादी माँ के पास आ जाते हैं और वह भी पुराना सा चश्मा लगाकर घंटों तक उन्हें पढ़कर उससे संबंधित कहानियाँ सुनाती रहती है। 

शाम को भी खेलने के लिए मोबाइल टी.वी. लैपटॉप हाथ में नहीं लेते बल्कि बाहर जाकर दोस्तों के साथ मैदान में खेलना पसंद करते हैं क्योंकि उनकी दादी माँ कहती है मैदान में खेलने से न केवल दोस्तों से दोस्ती बढ़ेगी बल्कि सेहत भी दुरुस्त रहेगी। रात को खाना खाने के बाद दोनों रजाई में घुस कर ना जाने कौन-सी परियों के देश में भी विचरने लगते हैं। भावना मन ही मन कुढ़ने लगी थी मेरे बच्चे कहीं दक़ियानूसी-से बच्चे ना बन जाएँ। नहीं . . . नहीं मुझे अपने बच्चों को स्मार्ट बनाना है। आज का ज़माना स्मार्ट बच्चों का है ऐसे ढीले-ढाले बच्चों का नहीं। 

अभी कल की ही तो बात है, ना जाने कितना घी और मेवा डालकर पोता-पोती के लिए दाल का हलवा बनाया गया था और यह दोनों बड़े चाव से दादी माँ की गोदी में बैठकर खाने में लगे हुए थे। भावना यह देखकर सिहर उठी थी इतना घी? बच्चों की सेहत का क्या होगा? अभी से ध्यान नहीं देंगे तो मोटे हो जाएँगे, थुलथुल हो जाएँगे। 

और इनके मैनर्स; हे भगवान काँटे छुरी के, डाइनिंग टेबल के सारे मैनर्स इनको सिखाए जा रहे हैं और यहाँ गोदी में बैठकर खाना खाया जा रहा है। दादी माँ के हाथ से खाना खाया जा रहा है और हाथ धोकर दादी माँ के पल्लू से हाथ पोंछे जा रहे हैं यह सब क्या हो रहा है? 

भावना विचलित होकर इधर-उधर घूमने लगी कुछ तो करना पड़ेगा फिर भावना ने जैसे दृढ़ निर्णय लिया और आज वह बच्चों को दादी माँ की गोदी से निकालकर ‘मॉल’ घुमाने लाई थी पिज़्ज़ा, बर्गर का स्वाद उन्हें फिर से याद दिलाने के लिए। 

जब तक बच्चे पिज़्ज़ा, बर्गर का स्वाद लेते भावना ने पास की दुकान से बहुत सी सीडी ख़रीद लीं थी कुछ कार्टून की, कुछ एनिमेशन की बच्चे जब देखेंगे तो दादी की कहानियाँ भूल जाएँगे। 

दृश्य 2 
महालक्ष्मी अपार्टमेंट फ़्लैट नंबर 905

“मम्मी को लवी और आदि है न उनकी दादी बहुत सारी कहानियाँ सुनाती है उनको पता है परी की, ख़रगोश की, शेर की, चूहे की, मगरमच्छ की और भी ना जाने कितनी सारी मम्मी कितना मज़ा आता है उन दोनों को,” कीर्ति ने अपनी मम्मी से लिपट कर कहा। 

“हाँ बेटा उसकी दादी माँ वाक़ई बहुत अच्छी है,” लता कीर्ति के सिर पर हाथ फेरती हुई बोली। 

“मम्मी मेरी दादी यहाँ क्यूँ नहींं आती पापा से बोलो ना लेकर आएँगे।” 

“हाँ, हाँ ज़रूर बोलूँगी पर तुम मुँह-हाथ धोकर खाना खा लो पहले,” माँ की बात सुनकर कीर्ति न जाने किस सपनों में खो सी गई। 

स्कूल कि बस रुकी और कीर्ति कूदकर बस से नीचे उतरी लता ने उसके कंधे पर पड़ा बैग उतारा।

“मम्मी आज क्या बनाया है लंच में?” 

“पालक पनीर।”

“नहीं मुझे नहीं खाना,” कीर्ति ने पैर पटकते हुए कहा। 

“आज तुम अगर पालक पनीर पूरा खा लोगी तो मैं तुम्हें बहुत अच्छी ख़बर सुनाने वाली हूँ।” 

“पहले बताओ।” 

“नहीं पहले खाना,” लता को पता था इस बहाने वो खाना पूरा खा लेगी। 

अच्छे बच्ची की तरह किटी ने खाना ख़त्म किया। 

“अब बताओ जल्दी से क्या ख़बर है?” 

“अच्छी ख़बर यह है कि कि . . .” लता एक-एक शब्द को धीरे-धीरे बोल रही थी।

“कि क्या?” 

“कल दोपहर को . . .” बोलते बोलते लता ने कीर्ति को गोद में बैठाया और फिर कीर्ति की जिज्ञासा कम करते हुए बोली, “कल दोपहर को तुम्हारी दादी आने वाली है . . . ख़ुश?” 

“हेsss!” कीर्ति ख़ुशी से उछल पड़ी। 

पूरी रात पोती दादी के सपनों में खोई रही। ‘अब मैं भी बताती हूँ आदि लवी को कि मेरी भी दादी आ रही है।’ 

स्कूल की बस में बैठते-बैठते कीर्ति ने मम्मी से कहा, “मम्मी आप ही आना आज मुझे लेने स्कूल से जल्दी जल्दी पहुँच जाऊँगी घर; दादी आयेगी ना आज?” 

“हाँ, हाँ आ जाऊँगी; अभी तो बस में बैठो।” 

दोपहर को कीर्ति दौड़ती हुई घर में घुसी, “दादी, दादी कहाँ हो? देखो में आ गई स्कूल से।” 

कमरे से दादी निकली और कीर्ति को गले लगा लिया। कीर्ति दादी के गले में लटक-सी गई। 

“दादी आपकी वो लम्बी-लम्बी चोटी कहाँ गई जिससे मैं खेलती थी; कितनी प्यारी थी!” कीर्ति ने दादी के छोटे-छोटे बालों पर हाथ फेरा। 

“अरे मेरी नन्ही परी, तुम्हारी दादी के बल बहुत टूटने लगे थे और सफ़ेद भी हो चले थे, तो मैंने कटवा लिए, देखो अब सफ़ेद भी नहींं रहे, सेम टू सेम तुम्हारे बालों जैसे ना। और भी आजकल यही तो स्टाइल चल रहा है।” 

कीर्ति को छोटे बाल कुछ अच्छे नहीं लगे। 

फिर भी इस सब को नज़रअंदाज़ कर कीर्ति बोली, “दादी दादी आपको पता है वह अपने पड़ोस में आदि और लवी रहते हैं ना उनकी दादी आई हुई हैं; उन दोनों को बहुत सी परी की, मगरमच्छ की, शेर की, कहानी सुनाती रहती हैं। आप भी मुझे सुनाओ ना, दादी मुझे भी सुननी है परी की कहानी।” 

“हाँ, हाँ बाबा सुनाऊँगी पर तुम्हें अभी-अभी तो स्कूल से आई हो, पहले कपड़े चेंज करो, लंच करो फिर देखेंगे।” 

यह कहकर जाती पास वाले सोफ़े पर बैठ गई और अपने स्मार्टफोन में आए मैसेज को चेक करने लगी। 

दादी का ध्यान अपनी ओर ना देख कर कीर्ति चुपचाप कमरे की ओर बढ़ गई। कपड़े चेंज करके और खाना खाकर एक बार फिर कीर्ति दादी के पास आई तो देखा दादी टी.वी. के सामने बैठे कोई सीरियल देख रही है ठहाके मार-मार कर हँस रही है। 

कीर्ति वापस चुपचाप अपने कमरे में चली गई फिर रात को होमवर्क करके खाना खाकर दादी के पास आई। 

“दादी मुझे परी की कहानियाँ कब सुनाओगी?” 

“बेटा अब तो बहुत रात हो गई बच्चे देर तक नहीं जागते जाओ सो जाओ सुबह जल्दी उठना है ना स्कूल जाना है,” दादी ने जैसे पोती से पीछा छुड़ाते हुए कहा। 

“पर दादी कल तो संडे है मुझे स्कूल नहीं जाना चलो ना दादी मेरे कमरे में चलो ना, चलो, चलो,” कीर्ति ज़िद करने लगी।

“अरे कल संडे है मुझे तो याद ही नहीं रहा, तो इसका मतलब आज शनिवार है और आज तो टी.वी. पर बहुत अच्छी मूवी आने वाली है मुझे देखनी है, परी की कहानी कल।” 

दूसरे दिन कीर्ति जब सो कर उठी तो उसने देखा दादी जल्दी-जल्दी तैयार हो रही थी शायद वो कहीं जाने वाली थी। 

“दादी कहा जा रही हो?”

“ओ मेरी नन्ही परी तुम्हारी दादी की भी बहुत सारी फ्रेंड्स हैं ना उनके लिए कुछ न कुछ ख़रीदना पड़ेगा; मॉल जा रही हूँ। बस आती हूँ दो-तीन घंटे में शाम की फ़्लाइट भी तो पकड़नी है मुझे।” 

“बस दादी आप चली जाओगी, बस एक दिन ही रुकोगी,” कीर्ति की आवाज़ में बहुत निराशा थी। 

“हाँ बेटा वह तो तुम्हारी मम्मी ने बार-बार फोन किया था कहा था कि हमारी नन्ही परी हमें बहुत याद कर रही है, इसलिए हम आ गए आपसे मिलने,” फिर दादी ने जल्दी से अपना पर्स उठाया, “अच्छा तो शाम को मिलते हैं,” कहकर दादी घर से निकल गई। 

दोपहर लंच के बाद दादी लौट आई थी। कीर्ति को दादी ने बड़े प्यार से अपनी गोद में बिठाया उनके हाथ में एक गिफ़्ट पैकेट था जिसी को देते हुए बोली, “मैं अपनी नन्ही सी प्यारी सी गुड़िया के लिए क्या लाई हूँ?” 

कीर्ति ने पैकेट खोल कर देखा उसमें कुछ रंग-बिरंगी सीडी थीं। 

“क्या है दादी ये?”

“बेटा इसमें बहुत सारी परियों की कहानी है, कार्टून है, तुम्हें बहुत अच्छी लगेंगी।” दादी ने दूसरा पैकेट निकाला और उसको खोल कर देते हुए कहा, “और देखो इसमें बहुत सारे वीडियो गेम्स हैं; बहुत मज़ा आएगा तुम्हें!”

कीर्ति के सपने जो उसने आदि और लवी की दादी माँ जैसी अपनी दादी के रूप में देखे थे वैसे ही टूट गए जैसे कोई सीडी टूट गईं। 

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