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पुस्तकें सुकून देती हैं

 

अक़्सर एक सवाल पूछा जाता है कि आपको कौन सी पुस्तक अत्यधिक पसंद है? इस का मुख्य कारण है जिस पुस्तक को वह पसंद कर रहे हैं उसके आधार पर उनके व्यक्तित्व की पहचान हो जाती है। इस सवाल का जवाब व्यक्ति के व्यक्तित्व बारे में बहुत कुछ बता जाता है। 

कई बार ऐसा भी होता हैं कुछ लोग अपनी पसंद की पुस्तक के बारे में बताना पसंद नहीं करते उन्हें भय होता है कि उनके बताने से उनके बारे में सब कुछ जान लिया जाएगा। उन्हें लगता है कि अगर वह किसी ऐसी पुस्तक का नाम लेते हैं जो साहित्यिक है तो वे पुराने ख़्यालात के ना समझ लिए जाएँ और यदि कोई हल्की फुल्की रोमांटिक किताब का नाम लेंगे तो लोग कुछ और ही विचार मन में पाल लें। 

याद करें आप जब रेल से, बस से, कार से यात्रा पर गए थे तो कौन सी किताब साथ ले गए थे, हालाँकि आज मोबाइल का ज़माना है किताबें हाथ में कम ही पाई जाती हैं फिर भी या यूँ कहें कौन सी किताब ले जाना पसंद करेंगे जहाँ मोबाइल साथ नहीं देगा। स्मरण शक्ति पर ज़ोर डालिए जब पहली बार किसी की किसी बात पर आपको चोट लगी तो किस पुस्तक ने आपका साथ निभाया, याद कीजिए ज़रा। कहने का तात्पर्य यह है कि हर किताब के साथ व्यक्ति का अपना अलग सम्बन्ध होता है जिस प्रकार मौसम बदलते हैं वैसे ही किताबों के संदर्भ भी बदलते हैं और ठीक उसी तरह इंसान कब क्या पसंद आएगा ये सोच भी बदलती जाती है। 

हम सब जानते हैं पुस्तकें हमारी साथी हैं हमारी बेस्ट फ़्रेंड है। 

वह कभी हमें भावुक कर रुला देती हैं तो कभी मन प्रसन्न कर हँसा भी देती हैं तो कभी विचारों में डुबो सोचने को मजबूर कर देती हैं, दीवाना बना देती हैं। हर किताब के साथ हमारा एक नया रिश्ता बन जाता है हर किताब हमको बहुत कुछ शिक्षा दे कर जाती है। 

जब हम किसी पुस्तक को पढ़ना शुरू करते हैं तो जैसे जीवन के सफ़र की भी शुरूआत करते हैं। 

अगर आपको किताबें पढ़ने में रुचि है या आप इसे अपना रुचि बनाना चाह रहे हैं तो आपको अनुभव होगा कि धीरे-धीरे आपके जीवन में आपके नज़रिए में बदलाव आना शुरू हो गया है। 

विश्व के महापुरुषों की सफलता और प्रसिद्धि के पीछे गहन अध्ययन और चिंतन की प्रवृत्ति होती है अध्ययन उनके जीवन का मूल मंत्र होता है गाँधीजी के बारे में कहा जाता है कि वे अवकाश का एक भी क्षण ऐसा नहीं जाने देते थे जिसमें वह कुछ पढ़ते ना हो। इसी प्रकार लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर और पंडित नेहरू आदि नेताओं ने तो महान ग्रंथ मानव जाति को प्रदान किए हैं। 

इनकी अधिकांश पुस्तकें जेल में भी लिखी गई लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य नामक ग्रंथ जेल में ही लिखा। पंडित नेहरू ने ‘मेरी कहानी’ और ‘भारत की खोज’ नामक पुस्तकें जेल जीवन में ही रह कर लिखी थीं। जिस पर दूरदर्शन ने सीरियल भी बनाया गया। 

उन पलों के बारे में सोचें जब मनुष्य बिल्कुल अकेला होता है उसे कोई सगा साथी आज पास नहीं दिखाई  देता उसे कुछ नहीं सूझता मन व्याकुल है ऐसे समय यदि कुछ रोचक शिक्षाप्रद किताबें रखी हो तो उसकी सारा अकेलापन दूर हो जाता है। उन पुस्तकों में उसे अकेलापन दूर करने का साधन मिल जाता है। उनमें उसका मन ऐसा डूब जाता है कि सभी के दुख दर्द ख़ुद ब ख़ुद विलीन हो जाते हैं। 

बच्चों की कहानियाँ कितनी रोचकता से पढ़ी जाती हैं और सुनी जाती हैं! याद हैं न वो परी की कहानी, वो ख़रगोश और कछुए की, शेर और ख़रगोश की, मगरमच्छ और बंदर की; उन कहानियों को पढ़ने में कितना आनंद आता था। माँ-पिता कुछ भी कहें रजाई में छुपा कर टॉर्च की लाइट में जब तक पूरी न हो जाए छूटती ही नहीं थी। बचपन बीता जवानी आई किताबों के विषय बदल गए। किताबें पढ़ने का एक अपना ही मज़ा है उसका आनंद जैसा कोई आनंद नहीं उसकी कोई तुलना नहीं। इस शौक़ की ना कोई आयु है ना कोई समय निश्चित है अगर शौक़ है तो है, और शौक़ भी ऐसा कि इंसान अपने आप को एक समझदार इंसान के रूप में पाता है। जैसे जैसे आयु बढ़ेगी किताबें सच्चे साथी की तरह साथ चलती रहेंगी। 

किताबों में वह शक्ति है कि एक कायर इंसान भी शक्तिवान और समय से पीड़ित निराश व्यक्ति भी आनंदित होता जाता है कहना ग़लत न होगा कि पुस्तकों के अध्ययन के बिना जीवन अधूरा है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन और मस्तिष्क को स्वस्थ और क्रियाशील रखने के लिए अध्ययन की आवश्यकता है। लेकिन इन सब के बावजूद इतना ध्यान तो रखना ही होगा कि जिस प्रकार ख़राब भोजन से शरीर अस्वस्थ हो जाता है वैसे ही ग़लत साहित्य की पुस्तकों से मन और मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। 

यहाँ एक बात और है यदि किसी को किताबें पढ़ने का बहुत शौक़ है तो लोग किताबों का कीड़ा बोलकर संबोधित करते हैं और ये मानने लगते हैं कि आप एकाकी जीवन ज़्यादा पसंद करते हो। पर ऐसा बिलकुल नहीं है ये किताब ही तो है सामाजिक जीवन से साक्षात्कार कराती है। 

किताबी कीड़ा बनना तो बड़ा वरदान है। किताबी कीड़ा जिसे अंग्रेज़ी में बुक वॉर्म कहा जाता हैं, बनना एक चुनौती का काम हैं। 

कभी आप किताबें नहीं ले पाते जितनी आप पढ़ने के शौक़ीन हैं और अगर नहीं मिली तो आपके पास बुक शेल्फ़ की कमी है। तो आप पब्लिक लाइब्रेरी का उपयोग कर सकते हैं अपने आप को चुनौती दे सकते हैं कि नियत समय पर आप कितनी किताब पढ़ सकते हैं। और आजकल तो डिजिटल ज़माने में सारी पुस्तकें पढ़ भी जा सकती हैं और सुनी भी जा सकती हैं। आँख बंद कर कानों में ईयर फोन लगा करो अपने पसंदीदा लेखक की पुस्तक का सुनने का आनंद ही कुछ और है। मधुर संगीत सुनने के तो सभी शौक़ीन होते ही हैं, इन ऑडियो पुस्तकों को सुनने का भी अपना अलग आनंद है। 

किताबें पढ़ने से फ़ायदा भी है कि यदि आपको किताबें पढ़ने की आदत पड़ जाती है तो भविष्य में आप एक अच्छे लेखक के रूप में भी प्रतिष्ठित हो सकते हैं। लेखन की दुनिया में, पत्रकारिता की दुनिया में अगर क़दम रखना है जल्दी से जल्दी किताबों के माध्यम से अपनी नींव को मज़बूत करना आरंभ कर दीजिए यह कोई एक-दो दिन का काम नहीं यह जीवन भर की प्रक्रिया है। 

कुल मिलाकर किताबें हमें बहुत कुछ सिखाती हैं वह हमसे अपनी दोस्ती भी करवाती हैं और यह भी बताती हैं कि हम कौन हैं, कैसे हैं और हमें कैसा होना चाहिए। सर आप दिनभर किताबों का साथ पकड़ लिया तो यक़ीन मानिए आपको किसी और की ज़रूरत नहीं। अगर आपको समाज कुछ जानना है उसकी फ़ितरत को पहचानना है तो फिर आज से ही अगर नहीं शुरू किया है तो किताबें पढ़ना शुरू कीजिए। 

एक बात और महत्त्व की है आप लोगों ने देखा होगा घर में धार्मिक पुस्तकों को किस प्रकार सँजोकर कपड़े में लपेटकर धूल मिट्टी से बचाकर आदर के साथ रखा जाता है और उसमें दी हुई शिक्षा को उस श्रद्धा से आत्मसात किया जाता है। आप भी अपनी पुस्तकों को अगर बुक शेल्फ़ में रख रहे हैं तो रचनात्मक तरीक़े से उसे पूरी तरह सुरक्षित कर के श्रद्धा से रखें। किताबें आपको बहुत कुछ देकर जाती हैं उसकी क़द्र कीजिए। यदि आप पुस्तकालय का उपयोग कर रहे हैं चाहे वह पब्लिक पुस्तकालय हो या आपके कॉलेज का पुस्तकालय, किताबों को हमेशा तरीक़े से उपयोग में लेना आपके पुस्तक प्रेम को दर्शाएगा। 

किताबों की एक बात हमेशा मुझे अच्छी लगती है, न वे कभी कोई शिकायत करती हैं और न ही कोई माँग करती हैं (No Complaints No Demands) बस वो हमेशा साथ देती हैं। 

कुल मिलाकर मैं कहना चाहूँगी कि केवल पुस्तकों के पढ़ने में नहीं अपितु उसे आत्मसात करने में है। पुस्तकों के विषय में कहा जाता है कि ‘Read, Chew and Digest’ अर्थात्‌ पढ़ो, समझो और ग्रहण करो। 

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