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हिंदी दिवस का औचित्य

 

कुछ दिन पहले हिंदी के प्रोफ़ेसर से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ बातों-बातों में उन्होंने कहा कि हमने तो अपने शिक्षण संस्थान में हिंदी दिवस मनाना छोड़ ही दिया है। जितना अपमान हम अपने देश में अपने लोगों द्वारा हिंदी का देखते हैं, मन खिन्न हो चुका; हिंदी दिवस मनाने का हमें अब कोई औचित्य समझ में नहीं आता। उनकी बातें सुनकर मन को ठेस पहुँची ऐसा उन्होंने क्यों कहा? कहीं ना कहीं कोई ना कोई तो उनके मन में टीस होगी ही। 

आज से 81 साल पहले 8 अगस्त 1942 में जब देश आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था तो गाँधीजी ने भारत छोड़ो का एक नारा दिया उनका एक सपना था कि जब अँग्रेज़ भारत छोड़ेंगे तो देश से अँग्रेज़ीयत भी चली जाएगी। 

लॉर्ड मेकाले ने आज से 175 साल पहले अपने पिता को पत्र एक लिखा था उन्होंने लिखा “आनेवाले सौ साल के बाद हिंदुस्तान में ऐसे बच्चे होंगे जो देखने में तो भारतीय दिखाई देंगे लेकिन दिमाग़ से अँग्रेज़ होंगे। उन्हें भारतीय संस्कृति के बारे में कोई ज्ञान नहीं होगा अपनी पुरानी परंपराओं को भूल चुके होंगे उन्हें पता नहीं होगा कि मुहावरे जो हमारे अपने हैं, वह क्या है अँग्रेज़ चले जाएँगे पर अँग्रेज़ियत नहीं।” 

आज़ादी के बाद 13 सितंबर 1949 को एक बहस में जवाहरलाल नेहरू ने बोलते हुए कहा था कि कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती हमने अपने राष्ट्र को शक्तिशाली बनाना है, ऐसा राष्ट्र बनाना है जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसमें आत्मविश्वास हो और जो विश्व के साथ सहयोग कर सके इसके लिए ज़रूरी है कि हमें अपनी भाषा हिंदी को अपनाना पड़ेगा। 

लेकिन अगर हम आज अपने आप पर नज़र डालें अपने देश पर नज़र डालें तो पाते हैं कि हमारा रहन-सहन, हमारी सामाजिकता, हमारी बोल-चाल, हमारे रीति-रिवाज़ सभी लॉर्ड मैकाले की भविष्यवाणी को सच साबित कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ नेहरू जी का सपना आज भी अधूरा है। 

ब्रिटेन के प्रसिद्ध इतिहासकार राजनीतिज्ञ और कवि जिनका नाम था ‘थॉमस बैबिंगटन मेकाले’ जिन्होंने हमारे प्रसिद्ध दंड विधान ‘इंडियन पेनल कोड’ की पांडुलिपि भी तैयार की थी, उन्होंने 2 फरवरी 1835 में ब्रिटिश संसद में अपने विचार प्रकट किए जो इस प्रकार थे। उन्होंने कहा कि मैं भारत का कोना-कोना घूमा हूँ मैंने यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो भिखारी हो या चोर हो। इस देश में इतनी ज़्यादा धन-दौलत है, इतने ऊँचे आदर्श हैं, इतने चरित्रवान और संस्कारिक मनुष्य हैं कि मैं नहीं समझता कि हम अँग्रेज़ कभी भी इस देश को जीत पाएँगे। हम जब तक उसकी रीढ़ की हड्डी को तोड़ नहीं देते, जो उसकी आध्यात्मिक विरासत है, तब तक इस देश पर हमारा साम्राज्य सम्भव नहीं। इसीलिए मेरा यह प्रस्ताव है कि हम भारत की पुरानी पुरातन शिक्षा व्यवस्था को, उसकी संस्कृति को बदल दें। जब हर एक भारतीय सोचने लगेगा कि जो भी विदेशी है, अंग्रेज़ी है वह अच्छा है, अपने देश की चीज़ों से बेहतर है, तब वह अपना आत्म गौरव, अपना आत्म सम्मान खो देगा और हमारी संस्कृति हमारी भाषा को बोलने लगेगा और तब हम इस देश को वैसा ही देश बना देंगे जैसा कि हम चाहते हैं। इसी सपने को साकार करने के लिए लॉर्ड मेकाले ने 1858 में ‘इंडियन एजुकेशन एक्ट’ बनाया जिसके तहत भारत में मौजूद सारे गुरुकुल बंद कर दिए गए और अंग्रेज़ी शिक्षा को क़ानूनी घोषित किया गया। 

क्यों ज़रूरी है हिंदी का सम्मान: 

  1. किसी भी भाषा के साथ उसकी संस्कृति जुड़ी हुई होती है। भारत का सांस्कृतिक इतिहास बहुत गौरवपूर्ण है। जो भी भारतीय इस इतिहास से अछूता रह जाए, उसे नहीं जान पाए और ना ही उसे अपना पाए तो वह पूर्ण रूप से भारतीय नहीं हो सकता। अपनी संस्कृति को समझने के लिए अपनी भाषा को जानना बहुत ज़रूरी है। 

  2. देखा गया है कि कुछ लोग जो अपने आप को पढ़ा लिखा कहते हैं, उन्हें लगता है कि हिंदी का ज्ञान ज़रूरी नहीं, क्योंकि उनके पास एक अच्छी नौकरी है, एक अच्छा भविष्य है और ऐशो-आराम की ज़िन्दगी भी है। लेकिन वास्तव में, वह लोग अपने आप में ही एक दायरे में सीमित हैं। उस दायरे के बाहर जाकर अगर देश की आत्मा के भीतर झाँकें तो पाएँगे, इस देश में अभी तक ज़्यादातर लोग हिंदीभाषी ही हैं और उनकी आत्मा तक पहुँचने के लिए हिंदी का ज्ञान ज़रूरी है। हाँ, यह बात ज़रूर है, यह हिंदी भाषा अभी तक तकनीकी ज्ञान से कुछ दूर है। तकनीकी एकता से ज़्यादा मानवीय एकता का महत्त्व है और यह तभी मुमकिन है जब उसमें समानता होगी मतभेद नहीं। 

  3. आज के युग में अंग्रेज़ी का ज्ञान एक ज़रूरत है। लेकिन ज़रूरत के लिए हम अपनी नींव को खोखला नहीं कर सकते। भाषा व्यक्ति को जोड़ती है, परिवार को जोड़ती है, समाज से गाँव फिर शहरों के महानगर को और धीरे-धीरे यह जुड़ाव मज़बूत होता चला जाता है। देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के माध्यम से जब तक देश में मातृभाषा का विकास नहीं होगा तब तक देश के विकास में भी बाधा आएगी। 

  4. आज देश में गाँव-गाँव में इंटरनेट सेवा शुरू की गई है। भारत को डिजिटल इंडिया बनाना है। अगर इंटरनेट पर अंग्रेज़ी में ही काम किया जाए तो ऐसे में भारत का सपना बहुत दूर चला जाएगा। पूरे देश को एक साथ इंग्लिश एकदम सिखाई नहीं जा सकती; उस समय बहुत सारा वक़्त लगेगा और अगर हम हर एक छोटी चीज़ को इस इंटरनेट से जोड़ना चाहें तो हिंदी भाषा का विकास बहुत ज़रूरी है। 

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि हिंदी की सहायता से देश की एकता अखंडता को क़ायम रखा जा सकता है, उसकी संस्कृति को समझा जा सकता है। हिंदी दिवस मनाना अपने आप में बहुत महत्त्वपूर्ण है। हिंदी दिवस मनाते वक़्त देश के लोग एक साथ आगे आते हैं और सही अर्थों में इसके माध्यम से एकता का प्रचार और प्रसार भी हो रहा है। 

और अंत में महात्मा गाँधी के विचार प्रस्तुत हैं, उन्होंने कहा था “अगर हम अंग्रेज़ी के आदी नहीं हो गए होते तो यह समझने में देर नहीं लगती कि अंग्रेज़ी उच्च शिक्षा का माध्यम बनाने से हमारी बौद्धिक चेतना जीवन से कटकर दूर हो गई है। हम अपनी जनता से अलग हो गए हैं। जो विरासत, हमें अपने बाप-दादा से हासिल हुई उसके आधार पर नव निर्माण करने के बदले, उस विरासत को हमने भूलना सीखा है। आज की सबसे पहली और बड़ी समाज सेवा यह है कि हम अपनी देशी भाषाओं की ओर मुड़ें और हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करें। 

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