फ़र्क़
कथा साहित्य | लघुकथा समता नारद15 Dec 2020 (अंक: 171, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
वो कोरोना लॉक डाउन का पहिला माह था और रमा अपने पति को खो चुकी थी। बेटा भी जब तब बीमार रहा करता है। इस लॉक डाउन ने उसके काम के सारे घर ख़त्म कर दिये हैं।
लॉक डाउन खुलने के बाद आज काम बाली बाई जैन साहब के यहाँ काम करने आयी थी। उसने काफ़ी फ़र्क़ महसूस किया। अब बर्तनो की संख्या भी सीमित हो गई थी। जहाँ 8 गिलास निकलते थे वहाँ अब सिर्फ़ 4 लोगों के 4 गिलास और उसी हिसाब से बर्तनों की संख्या भी कम हो गई थी। पोंछा लगाते समय भी उसने फ़र्क़ महसूस किया। लॉक डाउन के पहले जहाँ सारा घर तितर-बितर हुआ करता था, अब सारा सामान बिलकुल क़रीने से, जमा हुआ था। उसे भी झाड़ू-पोंछा करने में ज़्यादा समय नहीं लगा लेकिन उसने आज दिल लगा कर पूरा काम किया। शाम को जब वह अपनी बस्ती में पहुँची तो सारी की सारी बाइयों ने अपनी अपनी मालकिनों की तारीफ़ करनी शुरू कर दी। लेकिन सबको यह समझ में नहीं आया कि यह सब "कोरोना" की करामात है जिसने क्या अमीर, क्या मध्यम वर्गीय और क्या ग़रीब, सबको काम की महत्ता और ख़ुद का काम करने की आदत डाल दी। सभी बाइयों ने दिल से कोरोना को धन्यवाद दिया।
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