हतप्रभ
कथा साहित्य | लघुकथा समता नारद15 Dec 2020 (अंक: 171, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
मोबाइल पर लगातार बज रही रिंगटोन ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
"देख तो पिंटू, किसका फोन है?
"ममा, यह तो मौसियाँ जी का फोन है। मैं बात करूँ या आप करोगी।"
मैंने धीरे से उसको इशारा किया कि अभी घंटी बजने दो। इधर लगातार रिंगटोन बज रही थी और उधर मम्मी बड़बड़ करती जा रही थी, "जब देखो, तब फोन लगा दिया, अरे! लाकडाउन लगा हुआ है। सब घर पर क़ैद हैं। कोई ख़बर भी नहीं है और फिर फोन भी लगायेंगे तो यह नहीं कि जल्दी बात करके रख दें। कम से कम आधा पौन घंटे बे-सिर-पैर की बातें करेंगे। इनके परिवार का, दोस्तों-यारों का इतिहास सुनते-सुनते मैं तो पक गयी हूँ।"
तब तक नन्ही गुड़िया ने अनजाने में मोबाइल का बटन ऑन कर दिया। हतप्रभ मौसा जी उनकी बड़बड़ाहट सुन धक्क रह गये और मोबाइल उनके हाथ से छूट गया। इधर पिंटू अपनी ममा से पूछ रहा था कि मौसा जी को क्या बोलूँ।
ममा ने फोन हाथ में लेकर मधुर आवाज़ में कहा, "हैलो जीजाजी, हैलो जीजाजी।"
लेकिन तब तक फोन डिस्कनेक्ट हो चुका था और उधर मौसाजी सोच रहे थे कि इस कोरोना वायरस ने किस तरह रिश्तों की गर्माहट भी ख़त्म कर दी।
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