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गंगा मैया पर भारतीयों की आस्था 

 

प्रस्तावना

पंडित जवाहरलाल नेहरु की “भारत एक खोज” पुस्तक के अनुसार, “गंगा भारत की संस्कृति एवं विकास की कहानी है। यह बात बिल्कुल सत्य है कि भारत के हृदय में हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, अमीर, ग़रीब सभी वास करते हैं, भारत की संस्कृति का एक हिस्सा जिसमें उच्च वर्ण, निम्न वर्ण, छूत, अछूत सभी गंगा के लिए समान है। चाहे कोई भी हो गंगा सब की माँ है।”1

‘गंगा’ भारत की सर्वाधिक महिमामयी नदी है। इसे देवनदी, मंदाकिनी, भगीरथी, विश्नुपगा, देवपगा, देवनदी, इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। गंगा नदी भारत के चार राज्यों में से होकर गुज़रती है। ये हैं—उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल। गंगा नदी भारतीय संस्कृति का भी अभिन्न अंग है। भारत के प्राचीन ग्रंथों; जैसे-वेद, पुराण, महाभारत इत्यादि में गंगा की पवित्रता का वर्णन है। भारत के अनेक तीर्थ गंगा के किनारे पर ही स्थित हैं।

डॉ. ज्ञान चंद्र शर्मा कहते हैं, “गंगा का नाम मुख पर आते ही जिह्वा पवित्र और हृदय श्रद्धा से आप्लावित हो उठता है। यह भारतीय जनजीवन में कुछ इस प्रकार रची-बसी हुई है कि इसे भिन्न किया ही नहीं जा सकता। हमारे लिए गंगा एक नदी मात्र नहीं है बल्कि इस देश के समस्त विकास, उत्थान और वैभव की युगों की साक्षी है। वह यहाँ की संपूर्ण संस्कृति, सभ्यता, आस्था-विश्वास, धर्म, दर्शन, चिंतन, मनन का जीवंत इतिहास है। युग बदले हैं पर गंगा की धारा वही है, चिर सनातन और नित्य नूतन।2

“गंगा: भारत की परंपरा, भारतीय सभ्यता, भारतीय संस्कृति एवं सभी भारतवासियों के हृदय का स्पंदन, गंगा कलयुग में मोक्ष का पर्याय, त्रिपथगा, स्वर्ग सुंदरी, विष्णुपदी, मोक्ष दायिनी, पापनाशिनी भगवती माँ गंगा, हिमालय पुत्री, जिनके स्मरण मात्र से मनुष्य अपने दूषित कर्मों से मुक्ति पाता है, जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य अपने संपूर्ण पाप कर्म से मुक्त हो जाता है एवं जिनके स्पर्श मात्र से मनुष्य इस जन्म में सद्गति प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त होता है। ऐसी महिमामयी विशाल हृदयवाली, दुख हारिणी पतितपावनी, जाह्नवी, भागीरथी माँ गंगा।”3

गंगा नदी एक बहुत ही पवित्र नदी है और भारत में इसे हिंदू धर्म में एक देवी के रूप में पूजा जाता है। यह भारतीयों के जीवन-चक्र पर बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

गंगा मैया की महिमा 

गंगा मैया की महिमा के सम्बन्ध में विभिन्न पुराणों, धार्मिक ग्रंथों आदि में वर्णन मिलता है। 

श्रीमद्भागवत गीता के दसवें अध्याय में श्री कृष्ण ने कहा है, “मैं नदियों में गंगा हूँ। 

पुराणों के अनुसार:

“पूजिताया तु गंगायां पूजिता: सर्वदेवता 
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन पूजयेक्ष्हमरापगाम”4

अर्थात् गंगा देव नदी है। जिसका पृथ्वी पर अवतरण पापियों के मोक्ष के लिए हुआ है। 

“गंगा तारयति ते पुंसां दृष्टा, पीतावगाहिता” 

अर्थात् गंगा के दर्शन मात्र से, पान करने से, स्नान करने से ही मनुष्य तर जाता है। 

गंगा सकल मुद मंगल मूला। 
सब सुख करनि हरनि सब सूला॥

गंगा मैया इस संसार के अपने हर एक पुत्र को अपनी गोद में जन्म लेना चाहती है। अपने पुत्रों को सब सुख प्रदान करती है एवं दुःख को मूल से हरती है। 

गंगा के महत्त्व पर विभिन्न पुराणों में कहे गए बातें निम्नलिखित हैं:

पदम पुराण-महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि जो व्यक्ति गंगा जी के जल में विधिपूर्वक पिंडदान करता है, उसे सौ यज्ञों का फल प्राप्त होता है तथा अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है। 

स्कंद पुराण-गंगा जी मुक्ति प्रदान करने वाली हैं। गंगाजी पतितों को भी सद्गति प्रदान करती हैं। 

ब्रह्मवैवर्त पुराण-मनुष्यों के मोटे-मोटे पाप तो गंगा की स्पर्शवायु से ही भाग जाते हैं। 

विष्णु पुराण—गंगा जी में स्नान करने से शीघ्र पाप नाश हो जाता है और अपूर्व पुण्य लाभ मिलता है। 

नारद पुराण—धरती पर सभी तीर्थों में गंगा जी श्रेष्ठ हैं तथा इसके समान पापों का नाश करने वाला अन्य तीर्थ इस भूमंडल में नहीं है। 

स्मृतार्तिनाशिनी गंगानदीनं प्रवरामुने। 
सर्वप्रापक्षयकरी सर्वोपदवनाशिनी।5

गंगाजल के बारे में प्रचलित मान्यताएँ व तथ्य तो यहाँ तक कहते हैं कि यदि मृत्युशय्या पर पड़े व्यक्ति के मुख में गंगाजल डाल दिया जाए तो वह भी बंधनों से मुक्त हो जाता है। 

वाराणसी के गंगा तट पर मणिकार्णिका घाट पर मृत शरीर का अंतिम संस्कार होने से उस प्राणी को मोक्ष मिलता है, ऐसा विश्वास किया जाता है। गंगा तट पर ही वाल्मीकि ने रामायण रचि और तुलसीदास ने इसी के किनारे रामचरितमानस रचा। 

हर वर्ष देश के कोने-कोने से और विदेशों से लाखों यात्री वहाँ दर्शनों के लिए आते हैं। कुंभ और अर्द्धकुंभ आदि विशेष पर्वों के अवसर पर यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है। यह देश की धार्मिक और सांस्कृतिक अखंडता का उदाहरण प्रस्तुत करता है। गंगा के तट पर जो सभ्यता विकसित हुई है वह अति प्राचीन होने के साथ चिर नवीन है बल्कि गंगा की धारा की तरह। उसमें भिन्न-भिन्न संस्कृतियाँ आकर मिलती रही हैं उसी प्रकार जैसे गंगा में अनेक नदियाँ समाहित होती हैं। गंगा मैया हमारी संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। 

प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिसमिल्ला खान ने एक बार कहा था—‘मैं धन्य हूँ कि गंगा के निकट रहा। मैंने लंबे समय तक गंगा तट पर बैठकर शहनाई का अभ्यास किया है। इसमें मुझे अलौकिक आनंद व संतुष्टि मिलती है।’6 

गंगा जल की पवित्रता का वैज्ञानिक आधार

गंगाजल का परीक्षण करने वाले वैज्ञानिक हैनवरी ने लिखा:

“युगों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि गंगा जल सर्वथा पवित्र है। इसमें किसी भी मलिन वस्तु के संपर्क से मलिनता नहीं आती बल्कि जिस वस्तु से उसका स्पर्श हो जाता है, वह निश्चित रूप से पवित्र व शुद्ध हो जाती है। हम पश्चिम वाले इसके लिए हिंदुओं का मज़ाक़ उड़ाते आ रहे थे मगर अब परिक्षणों के बाद हमें अपनी हँसी रोकनी पड़ी है। यानी इन्होंने भी इसकी महत्ता स्वीकारी।”7

गंगा जी के प्रति हमारी श्रद्धा और आस्था अकारण नहीं है। इसका वैज्ञानिक आधार भी है। अनेक देशी और विदेशी शोधकर्ताओं ने परिक्षण से सिद्ध किया है कि गंगाजल में ऐसे बहुत से औषधीय गुण हैं, जो विविध शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाते हैं, इसके पान, स्नान, स्पर्शन और नव प्राणशक्ति का संचार होता है। पुरानी मान्यता है कि वृद्धावस्था में जब शरीर जर्जर और व्याधिग्रस्त हो जाए तो केवल गंगाजल ही इसका उपचार है। 

“शरीर जर्जरीभूते व्याधिग्रस्त कलेवर
औषधि जाह्नवी तायं वैद्यो नारायणोहरि।”8

“वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। अपने अनुसंधान को और आगे बढ़ाने के लिए डॉक्टर नौटियाल ने गंगा के पानी को बहुत महीन झिल्ली से पास किया। इतनी महीन झिल्ली से गुज़ारने से वायरस भी अलग हो जाते हैं। लेकिन उसके बाद भी गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता थी।”9

लौकिक साहित्य में संस्कृति और प्राकृत के अतिरिक्त बंग्ला, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू, उर्दू आदि भाषाओं में गंगा वर्ण्य विषय बानी है। हिंदी तो उस प्रदेश के विशेष भाषा है जिसको गंगा ने उर्वरा किया है। इसमें गंगा का चित्रण अनेक प्रसंगों में मिलता है। आदिकवि वाल्मीकि ने रामकथा का वर्णन करते हुए गंगा वर्णन का समावेश इसमें किया है। कालिदास के ‘रघुवंशम्’ में इसका विस्तृत चित्रण है। आदि शंकराचार्य ने गंगा की स्तुति में ‘गंगा शतक’ की रचना की। संस्कृत विद्वान पंडितराज जगन्नाथकी ‘गंगा लहरी’ में गंगा की देवी रूप में स्तुति है। हिंदी में विद्यापीठ, कबीर, रविदास, मीरा, सुर, दूलसी, भारतेंदु जैसे अनेक प्रमुख कवियों की रचनाओं में गंगा वर्णन के प्रसंग मिलते हैं। इन सभी रचनाओं में उल्लेखनीय है, पद्माकर की ‘गंगा लहरी’ और जगन्नाथदास रत्नाकर की ‘गंगावतरण’ है। 

गंगा मैया और भारतीय संस्कृति

प्राचीन काल से ही नदियाँ माँ की तरह हमारा भरण-पोषण करती आ रही हैं। नदियों की वजह से सभ्यताएँ पनपती हैं, बस्तियाँ बसती हैं हमारे ऋषि-मुनि नदियों के किनारे एकांत में बैठकर सालों तक तपस्या करते थे। आज भी हम कई उत्सव और त्योहार नदियों के साथ मनाते हैं। हिन्दू धर्म में तो मनुष्य के जीवन की अंतिम यात्रा भी इनकी गोद में ख़त्म होती है। तभी तो कुंभ और पूर्णिमा जैसे अवसरों पर गंगा में डुबकी लगाने के लिये लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। 

गंगा, गीता और गौ को भारतीय संस्कृति में विशेष महत्त्व दिया गया है। प्रत्येक आस्तिक भारतीय गंगा को अपनी माता समझता है। गंगा में स्नान का अवसर पाकर कृत-कृत्य हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन गंगा के प्रति अपनी सारी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते है। गंगा दशहरा के दिन यदि सम्भव हो तो गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए अथवा किसी अन्य नदी, जलाशय में या घर के ही शुद्ध जल से स्नान करें, पर गंगा जी का स्मरण और पूजन करे। 

गंगा पूजन के साथ उनको भूतल पर लाने वाले राजा भागीरथ और उद्गम स्थान हिमालय का भी पूजन नाम मंत्र से करना चाहिए। इस दिन गंगा जी को अपनी जटाओं में समेटने वाले भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए। सम्भव हो तो इस दिन दस फूलों और तिल आदि का दान भी करना चाहिए। 

हिंदू अपने पापों को मिटाने के लिए गंगा नदी का उपयोग करते हैं। उनका मानना है कि देवी गंगा नदी के रूप में पृथ्वी पर आईं, और अगर वे इसमें स्नान करते हैं तो उनके पाप साफ़ हो जाएँगे। लाखों हिंदू हर साल नदी में ख़ुद को साफ़ करने के लिए लंबा रास्ता तय करते हैं। 

हिंदुओं का मानना है कि यदि आप गंगा नदी में डूबकर मर जाते हैं, तो आपको स्वर्ग में एक जगह की गारंटी है। यह नदी उन खेतों के लिए पोषक तत्त्व भी प्रदान करती है जिनसे यह गुज़रती है। गंगा की सहायक नदियाँ 300 मिलियन से अधिक लोगों के लिए जीवनदायिनी हैं। हिंदू धर्म में गंगा स्नान का विशेष महत्त्व है। जिस प्रकार संस्कृत भाषा को देववाणी कहा जाता है, उसी प्रकार गंगाजी को देव नदी कहा जाता है। गंगा भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की परम पवित्र नदी है। इस तथ्य को भारतीय तो मानते ही है, विदेशी विद्वान भी इसे स्वीकार करते हैं। 

निष्कर्ष

गंगा के तट पर भारतीय सभ्यता का जन्म हुआ, जिसके किनारे भारतीय परंपरा का विकास हुआ। गंगा भारत की सांस्कृतिक पहचान है, गंगा भारत की धार्मिक आत्मा है। सदियों से हिंदू धर्म का कोई धार्मिक संस्कार कबगैर गंगा जल के संपन्न नहीं होता है। गंगा की जलधारा भारतीय धर्म का दर्शन है। संपूर्ण वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत एवं अन्यान्य भारतीय धर्म-ग्रंथों में जिसकी महिमा का गान हुआ है एयर जिसके आँचल में सैकड़ों मुनियों के जन्म हुआ है। माँ गंगा युगों-युगों से सिर्फ़ मानव कल्याण के लिए ही धरती पर बहती आ रही है। 

गंगाजल को हर भारतीय अमृत तुल्य मानकर उसका पान करता है। गंगा के प्रवाह में अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन कर प्रत्येक भारतीय अपने को पूर्वजों के क़र्ज़ से मुक्त कर मानता है। अपने पूर्ण जीवन काल के अंतिम समय में हर भारतीय के प्राण गंगा की सिर्फ़ एक बूँद मात्र के लिए तरसते हैं। यहीं विशेषता गंगा को संसार की हर नदी से पृथक बनाती है और मुक्ति का यहीं विश्वास गंगा को एक सामान्य नदी के बजाय देवी के रूप में प्रतिष्ठित करता है। 

“गंगे, गंगेति यो भ्रुयान योजनान्म शनैरपि। 
सर्वपाप विनिमुर्क्तो विष्णुलोकम स गच्छति॥”

अर्थात् जो कोई मनुष्य गंगा से हज़ारों मील की दूरी से भी गंगा, गंगा कहता है, उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं और वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है। 

गंगा पर स्थित काशी, जो आज भी विश्व की सबसे प्राचीन जीवित नगरी है। गंगा के तट की विशेषता। यह है कि कोई उसके तट पर कपड़े धो रहा है, तो कोई पूजा कर रहा है, कोई शव बहा रहा है। गंगा अपने जल की एक-एक बूँद अपने पुत्रों पर न्योछावर करती है। शायद इसलिए, वह करोड़ों भारतीयों की माँ है और उनकी आस्था है। 

गंगाजल को अमृत माना जाता है। गंगा स्नान की महिमा तो इसी से समझी जा सकती है कि इसे पापनाशिनी भी कहा जाता है। एक गीत में कहा गया है, “मानो तो मैं गंगा हूँ, ना मानो तो बहता पानी” यानी विश्वास मान्यता ही श्रद्धा का मूल है। वास्तव में गंगा मैया और गंगा जल की महत्ता सिर्फ़ अहसास करने का विषय है। इसकी महिमा अपरम्पार है, जो युगों से है और रहेगी। 

डॉ. महालक्ष्मी के                             
सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग
लोयोला कॉलेज, चेन्नई, तमिलनाडु
whatsapp: 9566032350
mahavijayan10@gmail.com

संदर्भ सूची:

  1. गंगा एक अभिव्यक्ति, डॉ. मुकेश मारू पृ. सं. 3

  2. आस्था की प्रतीक गंगा, सुदर्शन भाटिया पृ. सं. 9

  3. गंगा एक अभिव्यक्ति. डॉ. मुकेश मारू पृ. सं.1

  4. पुराणों में गंगा, डॉ. दयाशंकर दुबे पृ.सं. 82

  5. नारद पुराण. गीता प्रेस गोरखपुर पृ.सं. 6/12

  6. आस्था की प्रतीक गंगा, सुदर्शन भाटिया पृ:सं. 22

  7. आस्था की प्रतीक गंगा, सुदर्शन भाटिया पृ:सं. 22

  8. आस्था की प्रतीक गंगा, सुदर्शन भाटिया पृ:सं. 11

  9. https://www.bbc.com/hindi/india/2013/02/130206

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