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शोध में प्रतिवेदन की भूमिका

अँग्रेज़ी में एक कहावत है “curious Be! Curiosity is the mother of all knowledge.”  इस कहावत का अर्थ यह है कि “जिज्ञासु रहो! जिज्ञासा सभी ज्ञान की जननी है।” मनुष्य जन्म से जिज्ञासु होता है। मनुष्य का स्वभाविक गुण ऐसा है कि वह किसी विषय के समाधान से संतुष्ट नहीं होता है। उनके मन में एक विषय को लेकर हज़ार प्रश्न उत्पन्न होते हैं। मानव अपने बीच मौजूद हुए हर एक विषय के बारे बहुत सोचता है और विचार-विनिमय करता है। यह खोजने का भाव ही आज के बहुत सारे आविष्कारों का कारण है। 

शोध का अर्थ

“किसी भी सवाल के समाधान हेतु या शंका मिटाने हेतु जो क्रमबद्ध अध्ययन होता है उसे शोध कहते हैं”1 आमतौर पर सामाजिक क्षेत्र में सवालों के उत्तर तलाशने के क्रमिक एवं व्यवस्थित प्रयत्न को शोध कहते हैं। 

प्रतिवेदन 

शोध का अंतिम चरण प्रतिवेदन लेखन है। प्रतिवेदन में ही शोधकर्ता अपने निष्कर्ष को प्रस्तुत करता है। शोधार्थी बहुत सुन्दर तरीक़े से तथ्यों का संकलन, तथ्यों का विश्लेष्ण, सिद्धांतों का प्रतिपादन करने पर भी अगर अपने शोध में प्रतिवेदन नहीं लिखता है तो वह शोध अधूरा ही रह जाता है, क्योंकि प्रतिवेदन द्वारा ही शोधार्थी अपने शोध कार्य को दूसरों तक पहुँचाता है। प्रतिवेदन के द्वारा जो भविष्य में शोध कार्य करने जा रहे शोधार्थी भी लाभांवित होंगे। 

“Goode & Hatt (1962) ने American marketing society के मत को अपनी पुस्तक Methods of social research में लिखा है— “The preparation of the report is then the final stage of research and its purpose is to convey interested persons the whole result of the study in the sufficient details and so arranged as to to enable each reader to comprehend and date and to deter mind for himself the validity of the conclusions.” (“प्रतिवेदन की तैयारी शोध का अंतिम चरण है और इसका उद्देश्य इच्छुक व्यक्तियों को अध्ययन के पूरे परिणाम का पर्याप्त विवरण बताना और प्रत्येक पाठक को निष्कर्ष की वैधता को समझाना है”)2

“Selitize Jadoda, Deutsch & Cool (1961) के अनुसार— “The purpose of the report is not communication with on self but communication with the audience” (“प्रतिवेदन का उद्देश्य स्वयं के साथ संप्रेषण करना नहीं बल्कि दर्शकों के साथ संप्रेषण करना है”)3

प्रतिवेदन की अंतर्वस्तु

प्रतिवेदन में क्या-क्या विषयवस्तु लिखनी चाहिए, इसके बारे में अनेक सामाजिक वैज्ञानिक विशेषज्ञ अलग-अलग विचार रखते हैं। कुछ विषय इस प्रकार हैं:

1.प्रस्तावना
प्रस्तावना में शोध के महत्व और उसके लक्ष्य पर प्रकाश डाला जाता है। शोध करने वाली संस्था अथवा विभाग आदि का विवरण, शोधकर्ता का परिचय, विषय का चयन विवरण में प्राप्त तथ्यों तथा सूचनाओं का विवरण निष्कर्ष आदि के मूल्य भी इसके अंतर्गत किया जाता है।
2. अनुसंधान प्रणाली 
अनुसंधान में तथ्यों को एकत्र करने के लिए विभिन्न प्रणालियों को अपनाया जाता है। शोधकर्ता ने अपने प्रतिवेदन में जिन प्रणाली को अपनाया था उसका उल्लेख करना चाहिए। तथ्यों को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों का भी इस्तेमाल करते हैं, इसके बारे में भी प्रतिवेदन में लिखा जाना चाहिए। 
3.अध्ययन का उद्देश्य
जिस उद्देश्य से शोध किया जा रहा है उसका उल्लेख वह अपने प्रतिवेदन में करता है। यदि अनुसंधान को संचालित करने के लिए कोई सरकारी संस्था दिलचस्पी रखती है, तो अनुसंधानकर्ता उसके उद्देश्य को भी बता सकते हैं। ‘डिफ्लेशन’ प्रतिवेदन का यह सबसे महत्वपूर्ण चरण है। तांत्रिक तथ्यों को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए एवं उन्हें ग्राफ, चार्ट, सारणी एवं चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। 
4.समस्या का वर्णन 
शोधकर्ता को अपने प्रतिवेदन में समस्या की आवश्यकता एवं उसके आधार पर जानकारी प्रदान करनी चाहिए। अध्ययन विषय से संबंधित सीमाओं का निर्धारण करना चाहिए और जिस कारण से आपने उस समस्या विशेष को चुना है, इसका विवरण भी वह अपने प्रतिवेदन में लिखना चाहिए।
5.परिणाम 
तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर प्रमुख परिणामों को प्रतिवेदन में लिखना चाहिए। शोधकर्ता को इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि वे उसके विचारों या दृष्टिकोणों के साथ मेल खाते हैं या नहीं।
6.सुझाव
शोध कार्य में सूचनाओं का बड़ा महत्व है। प्रतिवेदन के अंत में शोधकर्ता अपनी ओर से कुछ सुझावों का भी उल्लेख कर सकता है। इन सुझावों को वह अपने अनुभव वह वस्तु स्थिति के आधार पर दे सकता है। 
7. निर्देशन चयन
शोधकर्ता अपने प्रतिवेदन में निर्देशन चयन प्रणाली को भी उल्लेख करना चाहिए। निर्देशन के चयन के लिए जिस पद्धति को अपनाया है, उसके कारण क्या हैं, भी लिखना चाहिए। प्रणाली के अंतर्गत निर्देशन का आकार एवं समग्र में उसका अनुपात, जैसी बातों को प्रतिवेदन में लिखना चाहिए।

अच्छा शोध प्रतिवेदन कैसे लिखे:

प्रतिवेदन परीक्षण का लिखित विश्लेषण होता है जिसमें शुरू से अंत तक शोध के लक्ष्यों, इकाइयों, प्रक्रिया व साधनों आदि का विश्लेषण किया जाता है। शोधकर्ता को इसका सृजन करते समय इसके प्रमुख लक्ष्यों को ध्यान में रखना चाहिए।

शोधकर्ता द्वारा प्रतिवेदन में शोध की समस्या, उसके पूर्व में किए गए शोध कार्य, शोध प्रक्रिया, विश्लेषण, प्राप्त निष्कर्ष आदि को लिपिबद्ध किया जाता है ताकि शोध विषय में रुचि वाले व्यक्तियों के सामने शोध से संबंधित बात पूर्ण ढंग से उभर कर आ सके।

  • प्रतिवेदन ऐसा लिखना चाहिए कि उसे पढ़कर अधिक से अधिक लोग लाभ उठा सकें। 

  • प्रतिवेदन अच्छे क़िस्म के काग़ज़ पर अच्छी तरीक़े से टाइप करवाना चाहिए। 

  • प्रतिवेदन से जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं वह भी विश्वसनीय प्रमाणिक होने चाहिए। 

  • एक अच्छे प्रतिवेदन में अध्ययन में आई कठिनाइयों तथा सर्वेक्षण की सीमाओं पर भी स्पष्ट उल्लेख करना चाहिए। 

  • प्रतिवेदन में किसी भी विषय को दोबारा दोहराना नहीं चाहिए।

  • प्रतिवेदन पढ़ने वाले के अनुसार तैयार करना चाहिए, जो जनसाधारण से लेकर विशेषज्ञ तक समझ में आना चाहिए।

  • प्रतिवेदन स्पष्ट एवं सार्थक होना चाहिए धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों प्रकार के निष्कर्ष प्रस्तुत करना चाहिए। 

  • प्रतिवेदन लेखन में वाक्यों की भाषा भूतकाल ही होनी चाहिए। उसमें निष्कर्ष मात्र वर्तमान या भविष्य से संबंध रखते हैं तो वर्तमान काल में लिखा जाना चाहिए।

  • प्रतिवेदन में फुटनोट, उपशीर्षक, मान चित्र, रेखा चित्र आदि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। 

  • प्रतिवेदन संक्षिप्त एवं स्पष्ट होना चाहिए। 

  • आकर्षक बनाने के लिए अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

  • प्रतिवेदन में सरल वाक्य का प्रयोग करना चाहिए।

  • एक अच्छे प्रतिवेदन में शोध के सभी चरणों का विस्तृत विवरण होना आवश्यक है शोध की समस्या क्या थी? उस समस्या का चयन क्यों किया गया? निर्देशन कैसे किया गया? सामग्री कैसे संकलित की गई तथा शोध का मुख्य निष्कर्ष क्या है? इन सभी बातों का उल्लेख प्रतिवेदन में करना अनिवार्य है। 

  • अध्ययन की कमियों को भी शोधकर्ता प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए। 

  • प्रतिवेदन के अंत में ग्रंथ सूची मुख्य है।

प्रतिवेदन का महत्व

  • शोधकर्ता के ज्ञान के विस्तार में मदद होगा। 

  • समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं के समाधान इसके द्वारा कर सकते हैं।

  • प्रतिवेदन आगमी आने वाले शोधकर्ताओं को लाभदायक और उपयोगी होती है।

  • प्रतिवेदन इस तरह प्रस्तुत किया जाए जिससे कोई भी शोधकर्ता अपने ज्ञान की वृद्धि कर सके।

  • अन्य शोधकर्ता प्रतिवेदन का अध्ययन करके उन्हीं बातों पर पुनः समय नष्ट नहीं कर सके।

निष्कर्ष

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्रतिवेदन को प्रस्तुत करना शोध कार्य प्रक्रिया की एक अंतिम चरण है। इस दृष्टिकोण से प्रतिवेदन को प्रस्तुत करना अनौपचारिक रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। बल्कि इसके सृजन में उन सभी नियमों का पालन करना भी आवश्यक है। शोध प्रतिवेदन इस अर्थ में रचनात्मक भी है कि इसी के द्वारा किसी विषय का गहनता से मूल्यांकन करके समस्याओं का निदान खोजा जा सकता है। शोध कार्य का अंतिम चरण प्रतिवेदन को माना जाता है। प्रतिवेदन के लेखन के साथ ही एक शोध कार्य पूर्ण माना जाएगा। कितना भी सुंदर तरीक़े से सिद्धांतों और विभक्ति काल का प्रतिचयन क्यों ना किया गया हो, प्रतिवेदन को लिखे बिना शोध कार्य की कोई उपयोगिता नहीं है। शोधकर्ता प्रतिवेदन के द्वारा अपने शोध कार्य को दूसरों तक पहुँचाता है, इसलिए प्रतिवेदन का लिखित स्पष्ट और सुव्यवस्थित होना अत्यंत ज़रूरी है।

ग्रंध सूची

1.रिसर्च शैक्षिक परिप्रेक्ष्य (डॉ. सुरेन्द्र शर्मा)  पृ.13
2.शोध स्वरूप एवं प्रविधियाँ (डॉ.राधाकिशन सोनी) पृ.97
3.शोध स्वरूप एवं प्रविधियाँ (डॉ.राधाकिशन सोनी) पृ.97

Dr. Mahalakshmi K
Assistant Professor, Hindi Department
SRM College of Science and Humanities
Vadapalani, Chennai.
 

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