गंगा में चाँद
काव्य साहित्य | कविता चुम्मन प्रसाद1 Oct 2019
एक मदारी
ज़ोर-ज़ोर से
डुगडुगी बजाकर – बजाकर
कह रहा है...
भाइयो और बहनो!
बजबजाती दुर्गंधयुक्त
इस गंगा में
चाँद तैरेगा...
पीछे पंक्ति में खड़े लोग
दुम हिलाते हुए
आसमान की तरफ़
देखकर
हुआ-हुआ करते हैं।
भिड़ जुटती जा रही
और, मैं
अपना मुँह ज़मीन पर ,
रगड़-रगड़ कर
लहुलुहान
कर रहा हूँ।
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