घोषणा पत्र
कथा साहित्य | लघुकथा भगवान अटलानी15 Mar 2021 (अंक: 177, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
वृद्धाश्रम में किसी प्रकार की असुविधा नहीं थी। सेवानिवृत्त उच्चाधिकारी व आर्थिक दृष्टि से समृद्ध वृद्धाश्रम के आवासी पूरा भुगतान करते थे और इसलिये ठसक से रहते थे। वहाँ कार्यरत कर्मियों, नौकरों, चाकरों को पैसे के ज़ोर पर ख़ुश रखने की कला में सब पारंगत थे। भौतिक रूप से वह सब कुछ था वहाँ, जिसके होने को सुखमय जीवन कहते हैं।
दो महीनों से यहाँ हैं। खाना-पीना, मौज-मस्ती, हँसी-ठट्ठा सब कुछ है मगर दुख-सुख बाँट सकें ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं मिला है उन्हें। फ़ेस बुक फ़्रैन्ड हर एक है, फ़्रैन्ड एक भी नहीं है। आत्मीय स्पर्श का अहसास कहीं से भी नहीं मिलता है।
बेटे-बहू में से किसी ने घर छोड़ने के लिये नहीं कहा था मगर मोटी पेन्शन का अन्दर बैठा घमण्ड, सम्पत्ति के किराये का अहंकार, सम्पन्नता के नागफन पर बैठा दर्प उन्हें समझौते करने से रोकता था। कहते नहीं थे मगर व्यवहार से साफ़ था, बेटे-बहू को उनका हस्तक्षेप पसन्द नहीं था। इसलिये घर छोड़ आये।
ख़ूब सोचा। मंथन किया। फ़ैसले पर पहुँचे कि घर लौटेंगे। निश्चय किया कि स्टाम्प पेपर पर बाक़ायदा घोषणा पत्र तैयार करेंगे और बेटे-बहू को दिखायेंगे। लिखेंगे कि भविष्य में हर काम को अनदेखा करते हुए सिर झुकाकर घर में रहेंगे। न किसी को रोकेंगे, न किसी से कुछ कहेंगे। यथासम्भव घर के हर काम में सहयोग देंगे।
घोषणा पत्र टाइप हो गया। दो लोगों को गवाह के रूप में हस्ताक्षर करने थे। वृद्धाश्रम में रहने वाले अनेक लोगों को घोषणा पत्र के सभी सोलह बिन्दु पढ़ाये। हर एक ने पढ़े ज़रूर मगर घोषणा पत्र पर गवाह के रूप में हस्ताक्षर करने से सब कन्नी काट गये।
वे समझ नहीं पा रहे हैं, निर्णय ग़लत है या सही?
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