गीता का ज्ञान
कथा साहित्य | लघुकथा संजय पुरोहित2 Jun 2016
प्रोफ़ेसर साहब का गीता अध्ययन गहन और तार्किक था। मित्रों ने सलाह दी कि गीता पर अपनी टीका छपवाएँ, पर उनकी कोई रुचि नहीं थी। प्रोफ़ेसर से प्रभावित एक युवा उनका शिष्य बन गया। उसके साथ घंटों चर्चाएँ चलतीं। शिष्य अपनी जिज्ञासाएँ रखता। प्रोफ़ेसर साहब सटीक जवाब देते। शिष्य जवाब को अपनी डायरी में लिखता। कुछ माह तक यही सिलसिला चला। फिर शिष्य ने आना बंद कर दिया।
एक दिन प्रोफ़ेसर साहब ने समाचार पत्र में पढ़ा कि "गीता" पर एक पुस्तक का लोकार्पण होने जा रहा है। लेखक वही युवा था, जो अपनी डायरी में प्रोफ़ेसर साहब के ज्ञान को दर्ज करता था। समाचार पढ़ कर प्रोफ़ेसर साहब का मन कड़वा हो गया। उन्होंने रैक से "गीता" निकाली और फिर से गीता के मर्म को पढ़ना शुरू किया।
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