हैं आँखें बहुत कुछ जताने को आतुर
शायरी | ग़ज़ल डॉ. भावना15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
हैं आँखें बहुत कुछ जताने को आतुर
मगर होंठ सब कुछ छुपाने को आतुर
मुहब्बत की दौलत मिली मुझको जबसे
गगन से ज़मीं तक सिहाने को आतुर
शहर की हवा में है तनहाई केवल
मगर मन है महफ़िल सजाने को आतुर
समझते नहीं हैं जो मरहम की ताक़त
जले पर नमक हैं लगाने को आतुर
सफ़र की मुसीबत को झेलें भी कैसे
सफ़र के ही साथी थकाने को आतुर
रुको आसमां में घुमड़ते ये बादल!
ये नदियाँ हैं सबकुछ डुबाने को आतुर
वज़ह साफ़ है फिर भी बुझो तो जानें
मिली आँख और वो लजाने को आतुर
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