हम तो विश्वगुरु हैं
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता ईश कुमार गंगानिया1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
क्या हो अगर
नए क़िस्म के लोकतंत्र में
चुनाव लड़ने के लिए
मेरिट का नया पैमाना हो
झूठ-मक्कारी प्राथमिक योग्यता
और मुहल्ले-पड़ोस में
गुंडागर्दी व मारपीट
हाईस्कूल जैसा प्रमाणपत्र हो
क्या हो अगर
रेप, छेड़ख़ानी, दादागिरी
जैसी योग्यता में इंटरमीडिएट हो
स्नातक की डिग्री के लिए
चोरी, डकैती, तस्करी
किडनैपिंग वग़ैरह पर
आधारित सिलेबस हो और
उसी पर छात्र का मूल्यांकन हो
क्या हो अगर
मर्डर और नरसंहार की
योग्यता के आधार पर
मास्टर डिग्री का प्रावधान हो
जेल यात्रा की बारंबारता
एम फिल की डिग्री के लिए
प्रयोगात्मक परीक्षा जैसे
अनुपम अनुभव का गुणगान हो
क्या हो अगर
ऐसी ही मेरिट के आधार पर
शासन व
प्रशासन की सेवा अवधि को
डॉक्टरेट व पोस्ट डॉक्टरेट की
मेरिट का पैमाना माना जाए
अब कल्पना कीजिए उन चेहरों की
जो देश की कैबिनेट के शीर्ष पर होंगे
क्या हो अगर
इस कैबिनेट की रक्षक
कमांडो की बड़ी फ़ौज हो
इनके क़िले चाकचौबंद हों
और इनके हौसले बुलंद हो
न्याय के दरवाज़े पर पैबंद हो
सेठ ‘सरदार’ के प्रयोजक हों
और सारी चारण मण्डली स्वछंद हों
क्या हो अगर
शहंशाह खाए कहीं से भी, मगर
निकालता फिरे मुँह से तो
देश में गंदगी का अंबार होगा
जिसके पास ऐसी मेरिट नहीं
वह देश का गुनहगार होगा
अरे छोड़ो, हम तो विश्वगुरु हैं
हमारा तो यूँ ही बेड़ा पार होगा।
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राजनन्दन सिंह 2023/03/10 04:00 PM
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